दुनिया में सबसे ज्यादा चिल्ला चिल्ला के मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले मुसलमान हैं | पर असल में सबसे ज्यादा और सबसे बड़े मूर्तिपूजक मुसलमान ही हैं | मुसलमानों को लड़ने का बहाना चाहिए कोई भी जिस से वे लड़ सकते हैं | आपस में लड़ते हैं कोई भी बहाना लेकर और बाहर ईश बहुदेववाद तो बहुत बड़ा बहाना हैं, कत्लेआम के लिए | खैर हम ये जानते हैं के मुसलमान मूर्तिपूजक कैसे हैं ? मूर्ति भी ऐसी वैसी नहीं योनी की, एक योनी की मूर्ति के सामने ना केवल झुकते हैं अपितु चुमते भी हैं |
काबा मंदिर सम्राट विक्रमादित्य का बनवाया हुआ था(प्रमाण के लिए इंस्ताबुल के मखताब-ई-सुल्तानिया में रखा सायर उल ओकुल देखे) | मंदिर में यज्ञ की जगह वाम मार्गियो का कब्ज़ा हो गया वाम मार्गी शिव लिंग स्थापित हो गया | उस समय आर्यो का साम्राज्य घट कर अर्व प्रदेश (अब अरब) तक ही रहे गया था | पांच छह सौ सालो में हमारा साम्राज्य और घट कर गांधार प्रदेश (अब अफगानिस्तान जिसकी राजधानी कंधार हैं) तक ही रह गया | अर्व में कोई केन्द्रीय सत्ता ना होने के कारण वहा नित नए कबीले बनते गए नए-नए पैगम्बर निकलते थे जैसे आज भारत में नित नए ढ़ोंगी बाबा होते हैं | अब्दुल मत्तलिब जो की मोहम्मद का दादा था काबा मंदिर में शिव लिंग के दर्शनार्थ आये तीर्थ यात्रियो का प्रबंधन कर्ता था | हजरे-अस्वद (काला पत्थर अस्वाद अश्वेत का अपभ्रंश हुआ ) वाम मार्गी शिव लिंग था जिसमे औरते अपना मासिक धर्मं का रक्त लगाती थी संतान की कामना के लिए | जो चार दीवारों पर सीधे गडा हुआ था उसकी छत भी रही हैं जिसकी छत पर एक समय अल्लाह की मूर्ति लगाईं गई थी | अल्लाह प्राचीन अर्व वालो का देवता था जिसकी तीन पुत्रिया थी | बाढ़ में कहते हैं वो मूर्ति गिर गई थी | जो आज जो नमाज पढते हैं वज्रासन में बैठ के उसमे कुछ नया नहीं शिव लिंग के सामने और अल्लाह की मूर्ति के सामने मुसलमान ऐसे ही झुकते थे | अब देखिये संयोग हिन्दुओ के पास पूजने के लिए लिंग रह गया और मुसलमानों के पास योनी |
१९८६ में इस्लाम के एक फिरके ने उसपर हमला कर दिया था | शिव लिंग टूट गया और अब चांदी से जुड़ा हुआ हैं |
काबा मंदिर सम्राट विक्रमादित्य का बनवाया हुआ था(प्रमाण के लिए इंस्ताबुल के मखताब-ई-सुल्तानिया में रखा सायर उल ओकुल देखे) | मंदिर में यज्ञ की जगह वाम मार्गियो का कब्ज़ा हो गया वाम मार्गी शिव लिंग स्थापित हो गया | उस समय आर्यो का साम्राज्य घट कर अर्व प्रदेश (अब अरब) तक ही रहे गया था | पांच छह सौ सालो में हमारा साम्राज्य और घट कर गांधार प्रदेश (अब अफगानिस्तान जिसकी राजधानी कंधार हैं) तक ही रह गया | अर्व में कोई केन्द्रीय सत्ता ना होने के कारण वहा नित नए कबीले बनते गए नए-नए पैगम्बर निकलते थे जैसे आज भारत में नित नए ढ़ोंगी बाबा होते हैं | अब्दुल मत्तलिब जो की मोहम्मद का दादा था काबा मंदिर में शिव लिंग के दर्शनार्थ आये तीर्थ यात्रियो का प्रबंधन कर्ता था | हजरे-अस्वद (काला पत्थर अस्वाद अश्वेत का अपभ्रंश हुआ ) वाम मार्गी शिव लिंग था जिसमे औरते अपना मासिक धर्मं का रक्त लगाती थी संतान की कामना के लिए | जो चार दीवारों पर सीधे गडा हुआ था उसकी छत भी रही हैं जिसकी छत पर एक समय अल्लाह की मूर्ति लगाईं गई थी | अल्लाह प्राचीन अर्व वालो का देवता था जिसकी तीन पुत्रिया थी | बाढ़ में कहते हैं वो मूर्ति गिर गई थी | जो आज जो नमाज पढते हैं वज्रासन में बैठ के उसमे कुछ नया नहीं शिव लिंग के सामने और अल्लाह की मूर्ति के सामने मुसलमान ऐसे ही झुकते थे | अब देखिये संयोग हिन्दुओ के पास पूजने के लिए लिंग रह गया और मुसलमानों के पास योनी |
समय बदला मोहम्मद ने गुंडा गर्दी से सत्ता हथियाई अपने परिवार को तो मुसलमान नहीं बना सका | उसके दादा ने इस्लाम कुबूल नहीं किया | उस से बेइंतहा प्यार करने वाले उसके चाचा अबू तालिब ने भी कभी इस्लाम स्वीकार नहीं किया | और सत्ता आने के बाद भी मोहम्मद लोगो की आस्था उस प्राचीन शिव मंदिर से ना हटा सका | तो उसे ही स्वीकारता दे दी गई | कारण था के जैसे अजिपति यानि इजिप्ट के लोंग अपने प्राचीन संस्कृति पर गर्व करते हैं और नहीं छोड़ते | इंडोनेसिया के मुसलमान अभी भी रामायण मंचन करते हैं वैसे ही अर्व के लोंग भी थे | बस भारत के ही कुछ मुसलमान भाई अपने हिंदू (आर्य) पूर्वजो के गौरव को नहीं मानते हैं | हजरे अस्वाद को मान्यता देने से मोहम्मद के कुल का धंधा भी चलता रहा तो हज मुसलमानों के लिए अनिवार्य कर दिया गया | लोंग भी खुश, मोहम्मद का परिवार भी खुश और आमदनी बढ़ी सो अलग, अर्व को आस्था की सुरक्षा मिली सो अलग | अब विषय ये हैं बुत परस्ती क्या होती हैं ? क्यों गलत हैं ? और मुसलमान कैसे हुए बुत परस्त ?
तो देखिये बुत परस्ती कहते हैं जड़ वस्तु यानी किसी निर्जीव चीज़ से जीवित चीज़ जैसा व्यवहार करना | बुत यानि मूर्ति बनाना कभी गलत नहीं ये तो कला का प्रतिक हैं | हां मूर्ति से इंसान जैसा व्यहवार करना अल्प बुद्धि का प्रतिक हैं | शिव लिंग जो की हजरे अस्वद हैं उसके सामने दिन भर में मुसलमान पाच बार झुकते हैं और हिन्दुओ को बुत परस्त कह के गलत कहते हैं | हुए ने झगडालू बिना बात के झगडा करने वाले | अरे मूर्तिपूजक हिंदू भी निराकार ईश्वर को मानते हैं पर अल्लाह तो इंसान स्वरुप ही हैं मोहम्मद का और प्राचीन अर्व वासियों का कल्पित देव | मोहम्मद को तो बस एक ऐसा साधन चाहिए था जिसके नाम से वो सारे गलत काम कर सके |
मुस्लिम तकिया (इस्लामिक झूठ) – हजरे अस्वद सिर्फ एक पत्थर हैं चिन्ह के लिए | उसकी पूजा नहीं करते |
समीक्षा : अगर केंद्र वाली बात करते हैं तो नापने का पत्थर केंद्र में होता हैं ना के दीवार में गडा होता हैं | सो भी वो किनारे आया |
देखिये जो पूजते नहीं तो पत्थर कर क्या रहा हैं वहा ? जिस तरह हिन्दुओ की आस्था को ठेस पहुचाते हुए कासिम गौरी ने हिन्दुओ की मूर्तियों का अपमान किया काबा मंदिर में लगे पत्थर को निकाल के पेशाब घर में क्यों नहीं लगा देते ? हिन्दुओ की मूर्तियों को तो खूब गन्दी जगहों पर लगाया गया हैं हिन्दुओ की आस्था को ठेस पहुचाने के लिए अगर पत्थर मुसलमानों की आस्था का विषय नहीं |
लंगड़ाबहाना : मूर्ति पूजा नहीं हम मुसलमान एकता में विश्वास करते हैं इसलिए वो पत्थर वहा हैं |
समीक्षा : चिन्ह केंद्र में होता हैं दीवार में गाडा नहीं जाता | उस चिन्ह को चूमा नहीं जाता | उसके लिए झगडा भी नहीं किया जाता | मील का सूचक पत्थर टूट जाता हैं तो दूसरा लगा दिया जाता हैं |
खुद मोहम्मद अंधविश्वासी मूर्तिपूजक था उसने पत्थर की योनी को चूमा था प्रमाण देखिये |
Volume 2, book of Hajj, chapter 56, H.No. 675. Umar (may Allah be pleased with him) said, “I know that you are a stone and can neither benefit nor harm. Had I not seen the Prophet (pbuh) touching (and kissing) you, I would never have touched (and kissed) you”.
यानी के "मुझे पता हैं के तुम सिर्फ एक पत्थर हो जो ना ही किसी फायदे का हैं और ना ही नुकसान हैं, पर मैंने अगर मोहम्मद को तुम्हे कहते और चुमते ना देखा होता तो मैं भी तुम्हे ना चूमता और छुता |"
ये तो पत्थर की योनी थी मोहम्मद ने तो इतनी औरते रखी हैं के क्या क्या चूमा होगा आप खुद ही अनुमान लगाये |
देखा आपने कैसे मोहम्मद ने अन्धविश्वास को बढ़ाया | किस अधिकार से मुसलमान दूसरों का मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं उनका सिर्फ एक ही मतलब हैं के वो मूर्ति पूजो जो हम पूजते हैं ना की वो जो तुम लोंग |
लंगड़ाबहाना : मूर्ति पूजा नहीं हम मुसलमान एकता में विश्वास करते हैं इसलिए वो पत्थर वहा हैं |
समीक्षा : चिन्ह केंद्र में होता हैं दीवार में गाडा नहीं जाता | उस चिन्ह को चूमा नहीं जाता | उसके लिए झगडा भी नहीं किया जाता | मील का सूचक पत्थर टूट जाता हैं तो दूसरा लगा दिया जाता हैं |
खुद मोहम्मद अंधविश्वासी मूर्तिपूजक था उसने पत्थर की योनी को चूमा था प्रमाण देखिये |
Volume 2, book of Hajj, chapter 56, H.No. 675. Umar (may Allah be pleased with him) said, “I know that you are a stone and can neither benefit nor harm. Had I not seen the Prophet (pbuh) touching (and kissing) you, I would never have touched (and kissed) you”.
यानी के "मुझे पता हैं के तुम सिर्फ एक पत्थर हो जो ना ही किसी फायदे का हैं और ना ही नुकसान हैं, पर मैंने अगर मोहम्मद को तुम्हे कहते और चुमते ना देखा होता तो मैं भी तुम्हे ना चूमता और छुता |"
ये तो पत्थर की योनी थी मोहम्मद ने तो इतनी औरते रखी हैं के क्या क्या चूमा होगा आप खुद ही अनुमान लगाये |
देखा आपने कैसे मोहम्मद ने अन्धविश्वास को बढ़ाया | किस अधिकार से मुसलमान दूसरों का मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं उनका सिर्फ एक ही मतलब हैं के वो मूर्ति पूजो जो हम पूजते हैं ना की वो जो तुम लोंग |
१९८६ में इस्लाम के एक फिरके ने उसपर हमला कर दिया था | शिव लिंग टूट गया और अब चांदी से जुड़ा हुआ हैं |
मुसलमान झुकते किसके सामने हैं ? ये तो अब सब जान गए हैं के अल्लाह मिया हैं यानी आदमी जैसा हैं? वो रहता भी सातवे आसमान पर हैं | वे झुकते हैं उस अल्लाह की मूर्ति की जगह पर जहा वो रखी थी बाढ़ मे गिरने से पहले | और उस शिव लिंग पर जिसके दर्शन को दूर-दूर से लोंग आते थे |
इस्लाम एक सम्प्रदाये हैं जो वाम मार्गी सम्प्रदाये से काफी आगे निकल गया हैं | वाम मार्गियो के सम्प्रदाये तो व्यभिचार और मांसाहार तक ही सिमित था | मोहम्मद ने वाम मार्ग को लूट,हत्या,डकैती,बलात्कार और दूसरों से नफरत करने की बुलंदियों तक पहुचा दिया | निराकार ईश्वर के उच्च सिद्धांत को समझना मोहम्मद जैसे व्यभिचारी के बस की बात कहा थी | खुद मानव योनी का दुरूपयोग कर के नर्क(निकृष्ट जीव योनी) में गया और दुनिया के अरबो मुसलमानों का पतन करवा गया | मुस्लिम भाइयो ईश्वर एक हैं निराकार हैं वह सबसे प्रेम करने वाला भेदभाव ना करने वाला न्यायकारी हैं | वो सभी जगह हैं उसे सातवे आसमान पर बैठने की जरुरत नहीं | जो ईश्वर परमात्मा हर जगह हैं उसे किसी पैगम्बर की जरुरत नहीं | ये पैगम्बर ढ़ोंगी बाबाओ जैसा ही चल रहा था जब मोहम्मद ने भी खुद को पैगम्बर घोषित किया | अल्लाह के नाम पर उसने वो सारे गुनाह किये और करवाए जो मानवता ही हदे तोड़ते थे | जिसने उस पर सवाल उठाया उसे मरवा दिया गया इसलिए भी आप लोंग हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं उसके गलत कामो पर शंका होने के बावजूद | देखिये मानव जन्म बार बार नहीं मिलता बड़ी मुश्किल से मिला हैं कई जीवो की योनियों को पार कर के इसे यु बर्बाद ना करिये | इस्लाम को छोडिये और वैदिक धर्मं को जानिए वापस अपने बाप दादाओ के धर्म को वापस आजाइए |