पश्चिम बंगाल में हनुमान जी की मूर्ति पर प्रतिबन्ध है ?
कोलकाता में बजबज इलाके के चिंगरीपोटा क्षेत्र में रहने वाले एक व्यवसायी श्री प्रशान्त दास ने अपने घर की बाउंड्रीवाल के प्रवेश द्वार पर बजरंग बली की मूर्ति लगा रखी है। 14 अगस्त की रात को बजबज पुलिस स्टेशन के प्रभारी राजीव शर्मा इनके घर आये और इन्हें वह मूर्ति तुरन्त हटाने के लिये धमकाया। पुलिस अफ़सर ने यह कृत्य बिना किसी नोटिस अथवा किसी आधिकारिक रिपोर्ट या अदालत के निर्देश के बिना मनमानी से किया। पुलिस अफ़सर का कहना है कि उनके मुख्य द्वार पर लगी बजरंग बली की मूर्ति से वहाँ नमाज़ पढ़ने वाले मुस्लिमों की भावनाएं आहत होती हैं।
पुलिस अफ़सर ने उन्हें “समझाया”(?) कि या तो वह बजरंग बली की मूर्ति का चेहरा घर के अन्दर की तरफ़ कर लें या फ़िर उसे हटा ही लें। स्थानीय मुसलमानों ने (मौखिक) शिकायत की है कि नमाज़ पढ़ते समय इस हिन्दू भगवान की मूर्ति को देखने से उनका ध्यान भंग होता है और यह गैर-इस्लामिक भी है। उल्लेखनीय है कि उक्त मस्जिद प्रशान्त दास के मकान के पास स्थित प्लॉट पर अवैध रुप से कब्जा करके बनाई गई है, यह प्लॉट दास का ही था, लेकिन कई वर्षों तक खाली रह जाने के दौरान उस पर कब्जा करके अस्थाई मस्जिद बना ली गई है और अब उनकी निगाह दास के मुख्य मकान पर है इसलिये दबाव बनाने की कार्रवाई के तहत यह सब किया जा रहा है।
श्री दास का कहना है कि पवनपुत्र उनके परिवार के आराध्य देवता हैं और यह उनकी मर्जी है कि वे अपनी सम्पत्ति में हनुमान की मूर्ति कहाँ लगायें या कहाँ न लगायें। मूर्ति मेरे घर में लगी है न कि कहीं अतिक्रमण करके लगाई गई है, इसलिये एक नागरिक के नाते यह मेरा अधिकार है कि अपनी प्रापर्टी में मैं कोई सा भी पोस्टर अथवा मूर्ति लगा सकता हूं, बशर्ते वह अश्लीलता की श्रेणी में न आता हो। परन्तु पुलिस अफ़सर ने लगातार दबाव बनाये रखा है, क्योंकि उस पर भी शायद ऊपर से दबाव है।
पश्चिम बंगाल जिस तेजी से इस्लामी रंग में रंगता जा रहा है उसके कई उदाहरण आते रहे हैं, परन्तु आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सभी पार्टियाँ मुस्लिम वोट बैंक के पालन-पोषण में जोर-शोर से लगी हैं, हाल ही में ममता बनर्जी ने रेल्वे के एक उदघाटन समारोह के सरकारी पोस्टर में खुद को नमाज़ पढ़ते दिखाया था। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि बजबज इलाके के माकपा कार्यालय को हनुमान की मूर्ति हटाने के अनाधिकृत आदेश के बारे में जानकारी न हो, परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह से वामपंथ और इस्लाम एक दूसरे से हाथ मिलाते जा रहे हैं, उस स्थिति में बंगाल और केरल के हिन्दुओं की कोई सुनवाई होने वाली नहीं है। फ़िलहाल प्रशान्त दास ने अदालत की शरण ली है कि वह पुलिस को धमकाने से बाज आने को कहे, पर लगता है अब पश्चिम बंगाल में कोई अपने घर में ही हिन्दू भगवानों की मूर्ति नहीं लगा सकता, क्योंकि इससे वहाँ अवैध रुप से नमाज़ पढ़ रहे मुस्लिमों की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, मजे की बात तो यह है कि यही “कमीनिस्ट” लोग खुद को सबसे अधिक धर्मनिरपेक्ष कहते नहीं थकते…
अब दो तस्वीरें इन्हीं कमीनिस्ट इतिहासकारों और उन रुदालियों के लिये जो बाबरी ढाँचा टूटने और अयोध्या के अदालती निर्णय आने के बाद ज़ार-ज़ार रो रही हैं और अपने कपड़े फ़ाड़ रही हैं…
अमन की आशा कार्यक्रम चलाने वाले बिकाऊ, कश्मीर पर समितियाँ बनाने वाले नादान, अलगाववादियों के आगे गिड़गिड़ाने वाले पिलपिले नेता, आतंकवादियों को मासूम बताने वाले पाखण्डी, अयोध्या निर्णय आने के बाद एक फ़र्जी मस्जिद के लिये आँसू बहाने वाले मगरमच्छ… सभी सेकुलर, कांग्रेसी और वामपंथी अब कहीं दुबके बैठे होंगे… उन्हें यह तस्वीरें देखकर उनके सबसे निकटस्थ पोखर में डूब मरना चाहिये…। अब सोचिये, इस जगह पर पाकिस्तान से मोहम्मद हाफ़िज़ सईद आकर एक मस्जिद बना दे, उसमें नमाज़ पढ़ी जाने लगे, फ़िर 400 साल बाद फ़र्जी वामपंथी इतिहासकार इसे “पवित्र मस्जिद” बताकर अपनी छाती कूटें तो क्या होगा? जी हाँ सही पहचाना आपने… उस समय भी गाँधीवादियों द्वारा हिन्दुओं को ही उपदेश पिलाना जारी रहेगा…
ताज़ा खबरों के अनुसार पश्चिम बंगाल के देगंगा इलाके के 500 हिन्दू परिवारों ने उनके साल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गापूजा को नहीं मनाने का फ़ैसला किया है, आसपास के सभी गाँवों की पूजा समितियों ने इस मुहिम में साथ आने का फ़ैसला किया है, क्योंकि देगंगा में सितम्बर माह में हुए भीषण दंगों के बावजूद किसी प्रमुख उपद्रवी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है, न ही तृणमूल सांसद नूर-उल-इस्लाम के खिलाफ़ कोई कार्रवाई की गई है। 1946-47 में भी इसी तरह नोआखाली में नृशंस जातीय सफ़ाये के विरोध में हिन्दुओं ने “काली दीपावली” मनाई थी, जब वध किये जाने से पहले एक “तथाकथित शान्ति का मसीहा” उपवास पर बैठ गया था। आज इतने सालों बाद भी देगंगा के हिन्दू… मीडिया की बेरुखी और मुस्लिम वोटों के बेशर्म सौदागरों की वजह से “काला दशहरा” मनाने को मजबूर हैं…
by Monu Singh Kattar Hindu
@uknewindia
ReplyDeleteMatlab hain mujhe logo ki dharmik swatantrata se...
logo ko ye batana ki musalmaan kitna neech kitnaa kamina hota hain apne paigambar ki taraha :D
dharmik swatantrata se matlab hai to islaam ko alag kaise kr sakta hai(islam bhi dharm hai sabse bda)
Delete.....dharmik swatantrata
tere dhade jaise sarr me kaafi kamiya hai
ilaaz kara le... :P
islam kahi se dharma nahi majhab hain....
Deleteaur majhab hone se ye adhikar mil jata hain k dusre ko uska majhab nahi manane doge
agar aisa hain to ukhaad fekna chahie aisa islam