Sunday, September 14, 2014

सभ्य समाज घृणास्पद इस्लामी शिक्षाओ को क्यों बर्दास्त करे ?

१.ये किसी भी देश मे रहे इनको उस देश का संविधान नहीं पालन करना इनको शरिया चाहिए |
२.इनसे आप शिक्षा, स्वास्थ विज्ञान इत्यादि मे सहयोग कि आशा छोड़ दे | अपितु पढ़ाई लिखाई कि ही आशा छोड़ दे जब तक के पढ़ाई कुरआन कि ना हों | ये उतना ही अनाज खाते है जगह घेरते है संसाधनों को खर्च करते है जितना के कोई डॉक्टर या इंजीनियर वैज्ञानिक कृषक जो समाज और राष्ट्र कि उन्नति के लिए स्थान और भोजन लेते है पर इनका योगदान अपराध के उद्योग मे ही अधिक रहता है |
३.नकली नोटों का व्यवसाय, चरस अफीम का उद्योग हथियारों कि तस्करी मे आप इनके लोगो को देखेंगे |
४.आबादी बढाना इनका प्रमुख ध्येय होता है | इन्हें परवाह नही के ये बच्चो को पढा पाएंगे के नहीं पर थोक के भाव बच्चे पैदा करते है |
५.मानवीय संवेदनाओ का अभाव इनमे रहता है पशुओ के प्रति क्रूरता इनमे रहती है और इनका उत्सव ही खून से संपन्न होता है | जब किसी निर्दोष जानवर का करूँण क्रिंदन होता है तो इनका उत्साह प्रबल होता है |
६.झगडा करना इनके स्वाभाव मे होता है | छोटी-२ बातो पर झगडा करते है और वो बात इतनी बढ़ जाती है के दंगो का रूप ले लेती है | जब दूसरा पक्ष जवाब दे तो ये दुम दबा कर भागते है और इतना रोना रोते है के सरकारी नुक्सान जो यही करते है पर सरकार से सबसे अधिक मुवावजा भी यही लेते है |
७.कसाई घर ये लोग चलाते है अन्न तो उत्पादित करना नहीं पर जो जानवर अन्न खा कर दूध दे या गोबर देकर इधन दे उसकी उसके चमड़े और मांस के लिए हत्या कर देते है | चमड़ा तो मरने के बाद भी मिल सकता है | चमड़े के शोधन से नदिया दूषित होती है और नदियो के साफ़ करने मे हजारों करोड कि योजनाये चलाई जाती है|
८. इनके लिए ना अपनी बहु,बहन, बेटियों का सम्मान है ना दूसरों का अपराध मे छेड़खानी मे तो रहते ही है बुआ मामा के बच्चों तक मे शादी कर देते है | इस प्रकार मानव जाती के जींस दूषित कर देते है |
९.लव जिहाद से ना केवल लड़किया दूषित करते है देह व्यापार मे भी लडकियो को ढकेला जाता है | आपकी बहन बेटिया इनके रहते सुरक्षित नहीं |
१०.जब आबादी और बढ़ जाती है तो सीधे बम से किसी को भी मारने लगते है एक तरह से स्पष्ट पागलपन जिसको प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन देते ही है |
११.ये ये तो चाहते है के दूसरे इनके धार्मिक विश्वास का आदर करे पर ये सुबह से शाम तक हिन्दुओ को या अन्य ईश्वर मानने वालो को ५ बार गाली देते है | अल्लाह ईश्वर है ये भी कहा जा सकता था पर अल्लाह के सिवाय कोई ईश्वर नहीं ये खुले आम कह कर हिन्दुओ के विश्वास को गलत कहते है |
१२.इनके जीवन का एक ही लक्षय रहता है इस्लाम का विस्तार चाहे तलवार से हों या लव जिहाद से या आबादी बढ़ा कर | एक बार देश कि राज सत्ता मे इनका कब्ज़ा हों गया | कट्टर हों या भाई जान कर के बात करने वाले सब दूसरे समाजो के खात्मे मे लग जाते है |
अब प्रश्न ये उठता है के इस प्रकार इन्हें बढ़ने देकर इनको निरंकुश बढ़ने कि स्वतंत्रता दे कर सामाजिक आत्म हत्या करने का क्या मतलब है ? हमारे गृहमंत्री के बारे मे हिंदू जन जाग्रति से पता चला के वे तो लव जिहाद क्या है जानते ही नही | आबादी वृद्धि दर मे दुगना होना भी उन्हें नही पता होगा | खैर जापान से हमारे प्रधान मंत्री जो कुछ लाये हों क्या वे कुछ वह के जैसे नियम लायेंगे जैसे जापान ने मुस्लिमो पर लगाए है या जैसे चीन ने या रूस ने नियंत्रण किया है | इस प्रकार से भारत मे २५ करोड मुसलमानों को अल्संख्यक के नाम पर सुविधाए देकर बिना ये देखे के वो देश को क्या योगदान दे रहे है सिर्फ देश को इस्लामीकरण कि ओर ले जाना है | यदि सरकार ने सख्त कदम नही उठाये तो इराक मे याजिदी का जो कत्लेआम हुआ है वो भारत मे इस से भी बुरा होगा | मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज से यही कहा था के तुम मुर्ख हों जो मुझे ७ बार छोड़ दिया मै तुम्हारी तरह मुर्ख नही | ईश्वर जाने कब राजनेताओ मे साहस आयेगा और वो सच मे देश रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएंगे | सभ्य समाज इन्हें क्यों बर्दास्त करे ये हमारी समझ से बाहर है किसी और के पास कारण हों तो बताये ?

Saturday, September 13, 2014

अल्लाह ने पिता को पुत्री पर और भाई को बहन पर चढाया

मुसलमान कहते है सब आदम कि संताने है | आदम संस्कृत के आदिम् का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है शुरू का, ये कोई नाम नही काल कि सज्ञा है | वैदिक सिद्धांत के अनुसार कई सारे मनुष्य त्रिविष्टप जो आज तिब्बत कहा जाता वह हुए | पर मुसलमानों और उस से पहले ईसाइयो और उस से पहले याहुदी मान्यता अनुसार आदम हवा कि कहानी गई जाती | आदम कि पसली से हवा निकली तो अब मुर्ख लोग सोचेंगे भी नही के क्या पुरुष के शरीर से स्त्री इस प्रकार पैदा हों सकती है ? यदि ईश्वर एक आदम बना सकता है तो कई और आदम बनाने मे उसे क्या समस्या है ? जब ईश्वर पुरुष बना सकता तो स्त्री बनने मे उसे क्या समस्या है ? फिर क्या आदम हवा का पिता नही हुआ क्यों के वो उस से उत्पन्न हुई ? फिर आगे कि कहानी ये है के उनसे ७ जोड़ो मे बच्चे हुए १ लड़का और १ लड़की अब दुनिया तो उन्ही से चलाई इनकी मान्यता अनुसार | अब सोचे जब शुरू मे भाई बहन के सम्भोग से लोग उत्पन्न हुए तो आगे किस अधिकार से अल्लाह भाई बहन के विवाह को ये निषिद्ध कर सकता है | क्यों के विवाह कि नीव मे ही भाई बहन है | आप इनको आयुर्वेद या जेनेटिक्स नहीं सीखा सकते क्यों के कुरआन कि कहानियों के आगे ये सुनेंगे ही नही | चाहे बात कितनी ही गन्दी हों यदि इस्लाम मे मान्य है तो इन्हें स्वीकार है | भाई बहन से शादी करने कि खबर भारत के पत्रों मे तो पढ़ी थी पाकिस्तान मे भी आने लगी | वास्तव मे अरब देशो मे ये बहुत ही सामान्य बात है कारण नीव मे है | जब अल्लाह तब करवा सकता है तो अब क्यों ना करे कि गन्दी सोच है |
http://www.pakistantv.tv/2014/08/02/shocking-brother-sister-married-pakistan/#sthash.cSXc8DEG.OJuyGePs.dpbs

Saturday, June 14, 2014

रामदेव के उत्पाद तब तक ना ख़रीदे जब तक के.....

रामदेव के उत्पाद तब तक ना ख़रीदे जब तक के श्री राजीव दीक्षित जी के वीडियो आस्था चैनल पर दोबारा ना चलने लगे | हमारे राष्ट्रवादी भाइयो ने दुकाने कि होगी रामदेव कि पर मुख्य लाभ रामदेव ही कमा रहा है | स्वदेशी के नाम पर पैर जमाने वाला विदेशी ढाचे से पैसा बना रहा है | पैसा बनाना है बनाये पर जिसके नाम का प्रयोग किया उसका काम आगे बढ़ाना होगा | यदि विक्री मे गिरावट होगी तों अपने आप सारे डीलर रामदेव पर दबाव डालेंगे राजीव दीक्षित जी के वीडियो आस्था पर चालाने को | स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित जी को सिर्फ एक मंच चाहिए था जो के देने का साहस किसी मे ना था पर क्यों के स्वदेशी के नाम से भी कमाई कि जा सकती है इसलिए रामदेव ने भरपूर राजीव जी कि विद्वता का प्रयोग किया और धन कमाया |
विकल्प स्वरुप डाबर के उत्पाद प्रयोग करे जो रामदेव के उत्पादों से कही सस्ते हैं |

Saturday, May 31, 2014

क्या राम किशन यादव उर्फ रामदेव ने कराई श्री राजीव दीक्षित की हत्या ?

पुरे देश मे हों रही लूट पर ध्यानाकर्षण कराने वाले श्री राजीव दीक्षित जैसा अद्भुत विद्वान तपस्वी मार दिये गए | जब उनकी हत्या हुई मैंने तब भी शंका की थी पर उस वक्त तों रामदेव के भक्त ये सुनते ही पागल से हों जाते थे | प्रश्न अभी भी वही है, अंतर इतना है के अब श्री राजीव दीक्षित जी के और रामदेव के ही पूर्व सहयोगीयो ने स्पष्ट खुलासे किये है | मै प्रथम तों उन चलचित्रों को सामने रखता हू, उन्हें देखने के बाद ही मेरी आगे की समीक्षा पढ़े |
श्री राजीव दीक्षित जी की मृत्यु स्वाभाविक नहीं हत्या हुई थी | क्यों के पूर्णतः स्वस्थ थे उनकी नीला या काला पड़ा शरीर स्पष्ट बता रहा था मृत्यु अस्वाभाविक थी | 
https://www.youtube.com/watch?v=jyoj393UoPo
उनका आखिरी दिन का साक्षात्कार
https://www.youtube.com/watch?v=ceaFX4k4ivA
श्री राजीव दीक्षित और राम किशन यादव के पुराने सहयोगियों ने आखिरकार अपना मौन तोड़ दिया | श्री राजीव दीक्षित जी के भाई के प्रदीप दीक्षित उन भाई के बगल मे बैठे हुए है जो रामदेव पर सीधे ऊँगली उठाई गई है |
https://www.youtube.com/watch?v=K6H6fIWgx_A
उन्हें बिमारी थी ये राम किशन यादव बोल रहा उनके मरने के बाद | परन्तु जीते जी स्वयं श्री राजीव दीक्षित जी बता रहे के उन्हें १५ साल से कोई बीमारी नहीं हुई | अब दो मे से कोई एक तों झूठ बोल ही रहा है | श्री दीक्षित या रामदेव यादव
https://www.youtube.com/watch?v=3aBs0BOKrxI
अब उन कारणों पर विचार करते है जिनके कारण श्री राजीव दीक्षित जी की जान गई | २०१० का समय कोई ऐसा समय नहीं था के श्री राजीव जी के कारण कोई परियोजना रुकी हों इस से पूर्व उन्होंने योजनाये रुकवाई है पुलिस की लाठिया भी खाई है | हा आंदोलन इत्यादि अवश्य शुरू होने थे और उन आंदोलनों की भीड़ यदि श्री राजीव दीक्षित जी को मिल जाती सुनाने को | तों ना तों कोई रामदेव को पूछता, ना अन्ना हजारे और ना अरविन्द केजरीवाल | किसी की हत्या के लिए देखना होता है कारण | राजीव जी की हत्या से किसे फायदा हुआ या किसे नुक्सान होने जा रहा था उनके जीते जी | तों इस वीडियो मे श्री राजीव दीक्षित जी ने स्वयं कहा के रामदेव कोई संत नहीं व्यापारी है | स्पष्ट है के रामदेव के पूंजीवादी ढाचे का एक हद तक ही समर्थन किया जा सकता था | स्वदेशी के नाम पर रामदेव अपनी दूकान बढाते चले जा रहे थे | फिर रामदेव कोई आदर्शवादी भी नहीं मल्टी नेशनल टेट्रापैक से पैकिंग की संधि भी कर चुके है | अब विषय ये है के यदि श्री दीक्षित सार्वजनिक घोषणा कर देते के रामदेव के उत्पाद मत ख़रीदे | क्यों के बिना सोडियम लौरेल सल्फेट के झाग उठता ही नहीं तों दन्त कान्ति मे कोलगेट से थोडा कम होगा पर है वही जेहर जो पिनियल ग्रंथि को प्रभावित कर्ता है | रामदेव को करोडो का नुक्सान उठाना पड जाता श्री राजीव दीक्षित के एक विरोध से या उनके अलग होने से | और अंतर्जाल पर उपलब्ध सुचनाये ये भी बताती है के श्री राजीव जी ने आजादी बचाओ आंदोलन के ४ करोड रूपय रामदेव को दिए थे | इस चलचित्र मे राजीव जी रामदेव को व्यापारी बता रहे है और संत के लक्षण बता रहे है जो हम सभी जानते है रामदेव मे नहीं है |
https://www.youtube.com/watch?v=Y1HStpj_vaU
रामदेव पर अपने गुरु शंकरदेव को मरवाने के आरोप भी लोग़ लगाते रहे है | ऐसा क्यों के जो रामदेव के साथ जुड़ा वो गायब हों गया और उसके रहने और ना रहने दोनों का ही लाभ रामदेव यादव को ही गया | रामदेव पर शंका इसलिए भी जाती है क्यों के वही सबसे करीबी ही धोखा देता है अपने निजी लाभ को | फिर फ़ालतू से फ़ालतू बयान रामदेव का दैनिक जागरण जैसे समाचार पत्रों मे प्रथम पृष्ठ पर आता था और है | पर श्री दीक्षित नहीं रहे ये एक भी स्थान पर नहीं आया | या प्रेस कांफेरेंस बुला कर घोषणा नहीं कर सकते थे | उल्टा जल्दी-२ उनके शरीर को आग लगा दी गई | पोस्ट मोर्टम के लिए उनके समर्थक चिल्लाते रहे पर रामदेव ने नही सुनी | पता नहीं पुलिस को पैसे खिला दिए गए थे या क्या | आश्चर्य ये अवश्य है के उनके परिवारजन कहा थे उस समय | श्री प्रदीप दीक्षित जो मांग अब कर रहे तब भी कर सकते थे | परिवार चाहे ना चाहे, रामदेव चाहे ना चाहे अस्वाभाविक मृत्यु के लिए पुलिस को कोई नहीं रोक सकता | अभी भी पुनः जाच पड़ताल हों दूध और पानी अलग हों जाएगा | पर धन की ताकत बड़ी चीज है | जब तक स्वदेशी के लक्ष्य की ओर अग्रसर कोई सत्ताधारी दल जाच नहीं करवाएगा पीछे छुपे बड़े चेहरे इतने बड़े प्रकांड विद्वान की हत्या के लिए सामने नहीं आएंगे | ईश्वर हमारे देश को ऐसे राष्ट्र भक्त देता रहे |
शमित्योम्

कैमरे पर पकड़ा गया राम किशन यादव बी जे पी उम्मेदवार से कह रहा बावला है क्या यहाँ काले धन की बात मत करो
https://www.youtube.com/watch?v=eZEKlOK8kx8 
http://daily.bhaskar.com/article/RAJ-OTC-baba-ramdev-caught-on-camera-advising-bjp-candidate-not-to-talk-about-black-mone-4584474-NOR.html

क्या आप भी रामदेव पर शक करते है | इस पोल मे हिस्सा ले
भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ताओ एक खुलासे पर क्या आपको राजीव दीक्षित जी के हत्या के पीछे रामदेव का हाथ लगता है ? विकल्प ऊपर दाई ओर है -

Thursday, April 10, 2014

अबकी बार, भव्य श्री राम मंदिर निर्माण

   नरेन्द्र मोदी की हर तरफ धूम है | हर कोई उन्हें प्रधानमंत्री बनते देखना चाहता है | पर इसका मूल केवल उनका हिन्दुत्ववादी चेहरा है | यदि गुजरात दंगे ना हुए होते और नरेंद्र मोदी का कद रुख ना देखने को मिलता या वो टोपी पेहें लेते या माफ़ी मांग लेते तों ये जो दिन रात अंतरजाल पर प्रचार कर रहे है वो संभवतः प्रचार ना करते | अटल बिहारी की सरकार के बाद हिंदुत्व के एक भी मुद्दे को पूरा ना करने का प्रयास भी ना करने के कारण विश्व हिंदू परिषद से लेकर हर कोई क्रोधित था | दूसरा कारण सेवाक्षेत्रो का निजीकरण था, निजीकरण का आप विपक्ष मे रहते तों विरोध करते थे पर सत्ता मे आने पर इन्होने भी कांग्रेस का ही काम आगे बढ़ाया | निश्चित तौर पर कांग्रेस से कही उत्तम सरकार चली पर धोखेबाजी भावनाओं से खेलना लोगो को बर्दास्त नहीं था | यदि अटल बिहारी वाजपेयी स्वस्थ होते और २००४ के बाद चूनाव प्रचार करते तों कोई आश्चर्य नहीं के किसी हिंदूवादी के गुस्से का शिकार हों जाते जैसे आये दिन केजरीवाल होते रहते है | बात अभी भी वही है, नरेंद्र मोदी की सरकार चाहे बहुतमत से आये या अल्पमत से इस बार उन्हें सदन मे प्रस्ताव लाने होंगे वरना आर्य तों अपना काम करवाने के अन्य माध्यम निकाल ही लेंगे इस बार की धोखेबाजी क्षमा नहीं होगी |
श्री राम मंदिर के नाम पर कितने लोगो ने बलिदान दिया | क्षमा तों मुलायम सिंह को भी नहीं किया जायेगा पर हमारी पहली प्राथमिकता श्री राम मंदिर का निर्माण होगा | इसका कारण क्या है के भाजपा का चूनाव का समय आया और श्री राम मंदिर पर बात होने लगी | मै भाजपा से जुड़ा नहीं उल्टा, जन संघ के सह संथापक बलराज मधोक के साथ जो अटल बिहारी ने किया या १९६७ मे दीनदयाल उपाध्याय की हत्या के विषय मे भी प्रश्न हमारे यथावत है | सिर्फ इसलिए लिख रहा हू क्यों के भाजपा जानती है के उसके हिंदू मत ही उसे जीत दिलाएंगे और इसलिए उसने श्री राम मंदिर का मुद्दा रखा | राजनाथ सिंह माफ़ी मांगते फिर रहे थे थोड़े समय पहले तक तों आजम खा ने सही जवाब दिया यदि दुःख है तों बाबरी मस्जिद बनवा दे माफ़ी ना मांगे | राजनाथ सिंह को तों हिन्दुवादी जवाब दे देंगे | पर भाजपा मे इस बार भय है के नहीं के यदि उसने कोई प्रयास नहीं किया अपने मुद्दों को पूरा करने का तों ? कुछ प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करते है |
१.       अयोध्या मे श्री राम मंदिर का निर्माण (भाजपा के २०१४ के घोषणा पत्र के हिंदी संस्करण के पृष्ठ ६३ पर)
२.       धारा ३७० को हटाना (भाजपा के २०१४ के घोषणा पत्र के हिंदी संस्करण के पृष्ठ १५ पर)
३.       सामान नागरिक सहिंता (भाजपा के २०१४ के घोषणा पत्र के हिंदी संस्करण के पृष्ठ ६३ पर)
४.       गौ रक्षा विधेयक (भाजपा के २०१४ के घोषणा पत्र के हिंदी संस्करण के पृष्ठ ६३ पर)
क्या कोई बाबरी मस्जिद थी ?
हम प्रमुखता से श्री राम मंदिर पर चर्चा करते है | जब मुस्लमान आक्रमण कारियों की गुंडागर्दी अपने चर्म पर थी अयोध्या का श्री राम मंदिर उन्होंने कब्ज़ा लिया | कोई इतना मुर्ख नहीं के पहले मंदिर तोड़े फिर उसके मलवे से मस्जिद बनाये | इतनी बुद्धि मुसलमान और मीर बाकी भी रखता है के मंदिर को हरा पुतवा दो और बन गई मस्जिद | क्यों के मस्जिदों मे गर्भ गृह नहीं होते | मस्जिदों मे तों गुम्बज भी नहीं होते क्या काबा मे गुम्बज या गुम्बद जो कहे है ? ये गुम्बदे उन्ही मस्जिदों मे मिलेगी जो कभी मन्दिर थे | प्रमाण के लिए अभी की बनी मस्जिदे देखे सब मे मीनारे है गुम्बद कही नहीं होती | गुम्बद हम आर्यो की ध्यान पद्धति का ध्यान कराती है | बहुत समय तक संघ वाले ये कहते रहे के वो मस्जिद थी मंदिर तोड़ के बनी ये कहना बंद करे | वो मंदिर था और उसपर सिर्फ कब्ज़ा किया था अधिक से अधिक अरबी मे लिखा पत्थर जडवा दिया जाता है और यही होता है उनका निर्माण |
दूसरा बाबरनामा का प्रमाण मिलता है के बाबरी एक लड़का था जिसपर बाबर मोहित था, सब जानते है बाबर समलैगिक था | अतः उस भवन का नाम बाबरी मस्जिद कर दिया | मुस्लमान दे ऐसी जगह का नाम समलैगिको के नाम बाबरी मस्जिद पर मंदिर का नही दे सकते | तों वो श्री राम मंदिर था और उसका पर पुनर्निमाण होना है |
मुसलमानों को क्या समस्या है ?
मुसलमानों को परवाह नहीं कौन सी इमारत तोड़ी जाती है | बात सिर्फ ये है के श्री राम के नाम पर आर्यो का जो शौर्य जाग उठा उसको देख कर ये घबराए है | यदि ये शौरी बना रहा तों पुरे देश मे लगभग ९८ प्रतिशत इतिहासिक मस्जिदों पर आर्य पुनः अपना अधिकार प्राप्त कर लेंगे | पर वे इतना नहीं सोच पा रहे के अयोध्या मे श्री राम मंदिर ना बनने देने से या मस्जिद का पेच फसा कर पुरे देश मे अपने लिए घृणा फैला रहे है | आर्यो के शौर्य की कल्पना भी नहीं कर सकते | क्यों के इतिहासकार वो दिखाते नहीं | अयोध्या मे ही थे देवी दीन पाण्डेय कहते है एक दिन मे ७५० मुस्लमान काट दिए थे अकेले ही | यानी ताना जी से कही ज्यादा लोग़ अकेले खत्म किये | हाल मे उनके गाव मे उनकी तलवार मिली उसे छपर मे वैसे ही वापस रख दिया गया | तों आर्य जन्म से शौर्यवान है बेकार की बातों के लिए वैर ना ले | श्री राम मंदिर के निर्माण मे स्वयं ईट लगाये आकर | यदि वे ऐसा करते है तों हम उनके लिए अयोध्या से बाहर भव्य मस्जिद बनवा देंगे पर हमें पता है ९ मन तेल नहीं होगा | मुसलमान साधारण सी बात साधारणतः समझते ही नही |
क्यों आवश्यक है श्री राम मंदिर
इसका सबसे प्रमुख कारण है १९९० मे बलिदान हुए कारसेवक | घर से निकाल कर किशोर लडको को पुलिस ने गोली मार दी | जिस लड़के ने श्री राम मंदिर के निर्वासित ढाचे पर भगवा झंडा फिराया था उसे भी मार दिया गया | ये सत्ता की ताकत पुलिस वो भी थी जो सुबह से शाम तक ढाचा गिरता रहा और देखती रही | श्री राम का नाम हमारे जीवन से पहले और मृत्यु के बाद तक जुड़ा है जुड़ा रहेगा | तों उनके नाम पर शुरू किया गया काम पूरा करना होगा | कोई मतलब नहीं उन बलिदानों का अगर आप विकास का नाम लेकर मूल आस्था को छोड़ देते है | अटल-आडवानी ने सत्ता का सुख लिया जाने कितने भाजपा वालो ने लिया और फिर भूल गए | आडवानी को जनता ने २ बार तमाचा दिया २००४ मे २००९ मे जिस व्यक्ति मे वैचारिक स्थायित्व नहीं उस दोमुहे का कोई अस्तित्व नहीं |
दूसरा और सबसे प्रमुख कारण है के श्री राम एक ऐसा नाम है जो लाखो सालो से हमारे पूर्वज लेते आरहे है | ऐसा त्यागी तपस्वी चक्रवर्ती राजा जिसने सूर्यवंश के चक्रवर्तित्व को राज व्यव्यस्था को नए आयाम पर पहुचाया | राजनीति जैसे पवित्र शब्द को अपने शौरी और नीतियों से और अधिक पवित्र कर दिया | श्री राम ने अकेले १४००० की सेना जो खर नाम के राक्षस के नेतृत्व मे थी खत्म कर दिया ये ऐसा हुआ के कोई धनुष लेकर जाए और नक्सली इलाको से पूरा नक्सली साफ़ कर दे | तों श्री राम को मानने वाले शौर्य की परंपरा का पालन तों करेंगे ही | विवाह के बाद लगभग २५ वर्ष का ब्रह्मचर्य ५१ वर्ष से ८१ वर्ष तक सत्ता सम्हालना और फिर सन्यास को वेद जिस मार्ग की बात कर्ता उसपर श्री राम चले सो उनके पीछे-२ जनता चली | वे आज भी हमारे राजा है आगे भी रहेंगे | श्री राम के मार्ग पर चलकर जिस शौर्य का पालन करते है उस से हम पुनः चक्रवर्ती राज्य की स्थापना कर सकते है | इसलिए इस बार भव्य श्री राम मंदिर निर्माण |
विदेशी नहीं चाहते हम श्री राम का नाम ले
अंग्रेजो ने पहले भी प्रयास किये | रामायण मे प्रक्छेप कराये गए | श्री राम पर ही सीता माता के त्याग का आरोप लगवा दिया, उन्हें माँसाहारी बता दिया | अरे इतने युद्ध का अर्थ ही क्या जब त्याग ही करना था | पर आर्यो ने एंग्लो लोगो की धूर्तता का पर्दाफाश किया | उत्तर कांड के प्रक्छेप सिद्ध किये |
हाल के वर्षों मे साईं बाबा नाम का एक ढोंगी खड़ा कर दिया गया | फिल्म बनी फिर धारावाहिक बना | उसके मंदिर बनने लग गए | विदेशियो ने भारतीयों के मन मस्तिष्क पर अच्छी शोध कर रखी है | एक माँसाहारी अल्लाह मालिक कहने वाला हाथ किस सफाई को धर्म से चमत्कार से जोड़ने वाले को उठाने का अर्थ था के आप जो श्री राम नाम का जाप कर रहे है उस से दुर रहे | ऐसे नारे दिए गए ओम् साईं राम यानी श्री राम और परमात्मा के श्रेष्ठ नाम ओम् के बीच मे एक माँसाहारी ढोंगी का नाम डाल कर पुजवाया जाने लगा | राम यर्थार्थ पवित्र आचरण सादा जीवन मर्यादाओ का पालन करने वाले उदाहरण थे | जब श्री राम का इतना नाम लेंगे तों कभी ना कभी पढेंगे ही उनके बारे मे | तब बस यही कहेंगे वाह श्री राम प्रभु ऐसा राजा हमे पुनः-२ देवो | पर यदि आप चमत्कार मे विश्वास करेंगे तों आप पुरुषार्थ से दुर् हों जायेंगे | इसलिए साईं बाबा एक प्रत्यक्ष उदाहरण है | प्रमाण देखना है तों आसपास देखे श्री राम जानकी मंदिर कितने है और उनमे कितने लोग़ जा रहे जब के साईं बाबा के मंदिरों मे कितने लोग़ जा रहे |
आर्यो के लिए इतना ही पार्याप्त है के उनके राजा प्रभु श्री राम का भव्य मंदिर अयोध्या मे बने | फिर तों आर्यावर्त मे राम राज्य और विश्व का वैदिकीकरण का कार्य प्रारंभ हों जाएगा | इसलिए जो ताकत प्रेम और समर्थन नरेंद्र मोदी जी को जनता दे रही वो श्री राम से जुडी आस्था के कारण |
भाजपा ने संविधान मे रह कर बात कही है | श्री राम मंदिर आस्था का विषय है और ये अदालत से बाहर है ये बात भाजपा वाले काफी समय से कह रहे | हम कहते है आस्था का विषय है पर इतने बड़े विषय पर कोर्ट साक्ष्यों पर राय देने का साहस करेगा ? जो सुप्रीम कोर्ट की बेंच आपातकाल पर अपनी राय न दे पाई, ताज महल पर बी बी सी कह सकता मंदिर है पर सुप्रेमे कोर्ट ने याचिका रद्द कर दी जिसकी भाषा अंग्रेजो है वो करेगी | हमें मंदिर निर्माण से मतलब है जहा कोई मस्जिद ना हों आसपास ५ किलोमीटर के क्षेत्र मे | हम आपको समर्थन दे रहे है आप हमे मंदिर दीजिए |
धारा ३७० हटने पर पाकिस्तान युद्ध की मूर्खता कर सकता है |
गौ रक्षा पर केन्द्र मे विधेयक आना चहिए ये चौथा प्रयास होगा और अटल बिहारी के किये कार्यों का पश्चाताप होगा |
समान नागरिक सहिता बन कर मुस्लिम बहने शरियत से बाहर आयेगी और देश मे पंथ निरपेक्षता का अच्छा उदाहरण तय होगा |
भाजपा यदि कर सके तों अल्पसंख्यक कितने प्रतिशत तक माना जाएगा ये तय करे और २००६ मे बनाया अल्पसंख्यक मंत्रालय खत्म कर के अंग्रेजो की अल्पसंख्यक बहुसंख्यक निति से देश को बाहर करे | खरी भाजपा ने खुद ही इतने वादे कर रखे है हमारे सुझाव तों बहुत दुर् का है | आशा है इस बार भाजपा ने ऐसा वादा नहीं किया जिसे वो पूरा ना कर सके | यदि किसी मुद्दे पर प्रस्ताव लाते उनकी मिलीजुली सरकार गिर जाती है तों अगली बार जनता उनके साहस के लिए पूर्णबहुमत देगी | श्री राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ होगा भारत को ना केवल इस्लामीकरण के चंगुल से बाहर करने का अपितु आर्यो की साम्राज्यवादी निति के विस्तार का पुनः प्रारंभ होगा | अयोध्या मे श्री राम मंदिर हमारी इतिहासिक धरोहर, शौर्य, समृधि, सम्पन्नता, उच्च चारित्रिक आदर्श, त्याग तपस्या, वैदिक जीवन पद्धति का प्रतिक होगा अतः
अबकी बार, भव्य श्री राम मंदिर निर्माण


ध्यान दे : महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश मे श्री राम और श्री कृष्ण ही हर जगह प्रयोग किया है | अतः (श्री) राम मंदिर भी बोल रहे है तों श्री राम मंदिर बोले | जय श्री राम

Sunday, February 9, 2014

Anti Hindu is presented as Hindu Icon, Ironical

आंग्ला लेख मै पुनः प्रकाशित कर रहा हू | सर्वप्रथम ये तथ्य अग्निवीर से ही प्रचारित हुए थे | कुछ समय बाद वे मुकर गए और लेख हटाने लग गए | धर्म से अर्थ प्रधान होते लोगो को कितना समय लगता है | हम यहाँ ये इसलिए रख रहे है क्यों के जो दिया वो सब विवेकानंद के साहित्य से दिया हुआ है और उसकी पुष्टि अंतरजाल पर कही भी हों सकती है एक प्रमुख वेबसाईट का लिंक भी साथ मे है | अतः उनका श्रेय केवल सब ढूंड कर संकलित करने का है सो हम साभार मानते है | प्रमाण स्वरुप आप इन बंधू का ब्लॉग देख सकते है
http://agrasen.blogspot.in/2009/03/hinduism-and-its-critiques.html
और सीधे श्रोत पर भी देखे यहाँ से ये हटा नहीं पाए संभवतः
https://groups.yahoo.com/neo/groups/aryasamajonline/conversations/topics/12150
यद्दपि अब अग्निवीर व्यवसायिक हों गए तों सुर बदल गए देखे प्रमाण
https://www.facebook.com/agniveeragni/posts/634826413198369
हिमांशु पाठक नाम के व्यक्ति के उत्तर स्वरुप शुरुआती टिप्पणी देखे |
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Is it not a blunder or fraud to have Vivekananda as role model for Hindutva? As per authentic sources (few reproduced below), he represented:
a. Beef eating as hallmark of glorious Vedic culture
b. Meat and beef as necessity for revival of our nation
c. Ram, Sita, Krishna etc being drunkards and meat-eaters
d. A chain smoker, who despite claiming to be sanyasi indulged shamelessly in this addiction, even in front of ladies
e. Prophet and Jesus being great teachers of world, God incarnate and messengers of equality and peace, among rare role-models of world.
f. Islam being necessary for survival of Vedanta!
g. Money being more important than concern for humanity.

If despite these blatant holes in his ideology, he is still the greatest role model for RSS, VHP and adorns all their speeches, writings, calendars, photos, symbols etc, why not have same kind of followership for a Nehru, Jinnah, etc. And if he is justified as role model, does not all the hoopla over cow-protection, islam, ram krishna being ideals become hoax?

Please refer to following sources to check veracity:
VIVEKANANDA A BIOGRAPHY by Swami Nikhilananda (Published 1953)
THE COMPLETE WORKS OF SWAMI VIVEKANANDA

Now some selected excerpts:

1. http://www.ramakrishnavivekananda.info/vivekananda_biography/05_wandering_monk.htm
"Orthodox brahmins regarded with abhorrence the habit of eating animal food. The Swami courageously told them about the eating of beef by the brahmins in Vedic times. One day, asked about what he considered the most glorious period of Indian history, the Swami mentioned the Vedic period, when 'five brahmins used to polish off one cow.' He advocated animal food for the Hindus if they were to cope at all with the rest of the world in the present reign of power and find a place among the other great nations, whether within or outside the British Empire."

2. http://www.ramakrishnavivekananda.info/vivekananda/volume_5/writings_prose_and_poems/the_east_and_the_west.htm#iii
Instances are found in the Râmâyana* and the Mahâbhârata* of the drinking of wine and the taking of meat by Rama and Krishna, whom they worship as God. Sita Devi vows meat, rice, and a thousand jars of wine to the river-goddess, Gangâ!* 

"Embracing Sitâ with both his arms, Kâkutstha (Râma) made her drink pure Maireya wine, even as Indra makes Shachi partake of nectar.Servants quickly served flesh-meat variously dressed, and fruits of various kinds for the use of Rama."

- "(I saw) both of them (Krishna and Arjuna) drunk with Madhvâsava (sweet spirituous liquor made from honey), both adorned with sandal paste, garlanded, and wearing costly garments and beautiful ornaments."(Udyoga, LVIII. 5).
- "Be merciful to us, O goddess, and I shall, on my return home, worship thee with a thousand jars of arrack (spirituous liquor) and rice well-dressed with flesh-meat" (Ramayana).
3. Next para:

Whatever one or the other may say, the real fact, however, is that the nations who take the animal food are always, as a rule, notably brave, heroic and thoughtful. The nations who take animal food also assert that in those days when the smoke from Yajnas used to rise in the Indian sky and the Hindus used to take the meat of animals sacrificed, then only great religious geniuses and intellectual giants were born among them; but since the drifting of the Hindus into the Bâbâji's vegetarianism, not one great, original man arose midst them.
4. http://www.ramakrishnavivekananda.info/vivekananda/volume_3/lectures_from_colombo_to_almora/reply_to_the_address_of_welcome_at_madura.htm
"There was a time in this very India when, without eating beef, no Brahmin could remain a Brahmin; you read in the Vedas how, when a Sannyasin, a king, or a great man came into a house, the best bullock was killed; "
5. http://www.ramakrishnavivekananda.info/vivekananda/volume_3/lectures_from_colombo_to_almora/reply_to_the_address_of_welcome_at_madura.htm
About vegetarian diet I have to say this — first, my Master was a vegetarian; but if he was given meat offered to the Goddess, he used to hold it up to his head. The taking of life is undoubtedly sinful; but so long as vegetable food is not made suitable to the human system through progress in chemistry, there is no other alternative but meat-eating. So long as man shall have to live a Râjasika (active) life under circumstances like the present, there is no other way except through meat-eating. It is true that the Emperor Asoka saved the lives of millions of animals by the threat of the sword; but is not the slavery of a thousand years more dreadful than that? Taking the life of a few goats as against the inability to protect the honour of one's own wife and daughter, and to save the morsels for one's children from robbing hands — which of these is more sinful? Rather let those belonging to the upper ten, who do not earn their livelihood by manual labour, not take meat; but the forcing of vegetarianism upon those who have to earn their bread by labouring day and night is one of the causes of the loss of our national freedom. 

He implies that vegetarian food made us slave!!
6. http://www.ramakrishnavivekananda.info/vivekananda/volume_3/buddhistic_india.htm

You will be astonished if I tell you that, according to the old ceremonials, he is not a good Hindu who does not eat beef. On certain occasions he must sacrifice a bull and eat it. 

7. http://www.ramakrishnavivekananda.info/vivekananda/volume_9/newspaper_reports/part_iii_indian_newspaper_reports/01_madura_mail_jan_28_1893.htm
The perfect religion is the Vedic religion. The Vedas have two parts, mandatory and optional. The mandatory injunctions are eternally binding on us. They constitute the Hindu religion. The optional ones are not so. These have been changing and been changed by the Rishis to suit the times. The Brahmins at one time ate beef and married Sudras. [A] calf was killed to please a guest.
8. http://www.ramakrishnavivekananda.info/vivekananda/volume_8/epistles_fourth_series/060_blessed_and_beloved.htm
BLESSED AND BELOVED (Mr. E. T. Sturdy), 
So far the journey has been very beautiful. The purser has been very kind to me and gave me a cabin to myself. The only difficulty is the food — meat, meat, meat. Today they have promised to give me some vegetables. 

9. http://www.ramakrishnavivekananda.info/vivekananda/volume_9/letters_fifth_series/106_mrs_bull.htm
The result of this steady work in the West and the tremendous work of a month in India upon the Bengalee constitution is "diabetes". It is a hereditary foe and is destined to carry me off, at best, in a few years' time. Eating only meat and drinking no water seems to be the only way to prolong life — and, above all, perfect rest for the brain. 

10. Vivekananda in Public: Hindus Should not Kill any Animal for Food
"What business has a man to kill a cow, a goat, or any other animal for food?" Volume 3, "Buddhistic India" Feb. 2 1900
Vivekananda in Private: Hindus Should Eat Meat - Half a Pound a Day
Per-Person Recommended
"Q. Is it feasible for us Bengalis, poor as we are, to take meat?
Swamiji: Why not? You can afford to have it in small quantities. Half a pound a day is quite enough."

Volume 5, Conversations and Dialogues, IX

11. Vivekananda's Sense of Noble Service to Humanity
"I am quite satisfied with my task in life. I have been much more
active than a Sannyasin ought to be. Now I will disappear from society
altogether. The touch of this world is degenerating me, I am sure, so
it is time to be off. Work has no more value beyond purifying the
heart. My heart is pure enough; why shall I bother my head about doing
good to others?" Volume 9, Letter LXXXV Feb. 6th 1896

Vivekananda: In It For 'Quick Money'
"I had a lecture here [Los Angeles] last night. The hall was not
crowded, as there was very little advertisement, but a good-sized
audience though. I hope they were pleased. If I feel better, I am
going to have classes in this city soon. I am on the business path
this time, you know. Want a few dollars quick, if I can."

Volume 9, Letter CLIX Dec. 9th 1899
"I am making money fast - twenty-five dollars a day now. Soon I will
work more and get fifty dollars a day. In San Francisco I hope to do
better still - where I go in two or three weeks. Good again - better,
I say - as I am going to keep the money all to myself and not squander
it anymore. And then I will buy a little place in the Himalayas... And
the whole world may go to ruin round my ears, I would not care."
Volume 9, Letter CLXI Dec. 27th 1899

हिंदू शब्द पर फैली कुछ भ्रान्तियो का समाधान

ये शोध पूर्ण लेख विद्वान विश्वप्रिय वेदानुरागी जी का है | हम जन हित मे उसे पुनः प्रकाशित कर रहे है |
सब को सादर नमस्ते !
यह लेख निम्न लिंक का उत्तर है |
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=719275088091522&set=a.675662945786070.1073741827.675655572453474&type=1&theater
यदि आपको (हिंदुवादियों) को हमारा इस प्रकार का लेख पसंद नहीं तो कृपा कर “हिन्दू” जैसे अशास्त्रीय, असंस्कृत, अपभ्रंश, विकारी, अशुद्ध शब्द को सही सिद्ध करने का असफल प्रयास बार-बार ना करें | यदि आप इसे सिद्ध करने के लिए प्रयास करेंगे, मंडन करेंगे, तो हम फिर पुन:-पुन: सत्य का उद्घाटन करेंगे और खंडन कर सत्य का मंडन करेंगे, करते रहेंगे |
हिन्दू शब्द को लेकर आर्य बंधुओं को कोई शंका नहीं है |
पं• चक्रपाणि त्रिपाठी जी के द्वारा संग्रहित लेख में हिन्दू शब्द को सिद्ध करने की जगह हिंदी को तोड़-मरोड़ कर सिद्ध किया | क्या पं.चक्रपाणि त्रिपाठी जी ! ८ वीं शताब्दी से पूर्व की किसी संस्कृत पुस्तक में से हिन्दू शब्द दिखा सकते हैं ?
हिंदी की उत्पत्ति भी बहुत विचित्र-विकृत ढंग से प्रस्तुत की जो की अनेक प्रश्न खड़े करती है |
यदि हिंदी शब्द का विकार इहनदी बना तो व्याकरण के किस नियम से बना ? यदि ऐसे नियम अन्य शब्दों पर भी घटाये जाएँ तो क्या उचित होगा ?
पं.चक्रपाणि त्रिपाठी जी के अनुरूप हमने भी अन्य शब्दों की तोड़-फोड़ की है :-
• अनादी शब्द का क्या अर्थ है ? अनादी शब्द बना है अ+नादी | यहाँ “अ” निषेध अर्थ में है और नादी का अर्थ है नदी का बड़ा रूप | जब नदी, छोटी हो तो उसे नदी कहेंगे और जब वह बड़ी नदी हो तो उसे नादी कहेंगे | और नादी के आगे यदि निषेध अर्थ में “अ” लग जाएगा तो बन जायेगा अनादी, जिसका अर्थ होगा छोटी नदी | इस प्रकार अनादी शब्द का अर्थ होगा छोटी नदी |
• कुलक्षणी का अर्थ होगा कुल् + लक्षण = कुल के लक्षण |
• आलोचना = आलू+चना
क्या शब्दों के अर्थ इसी प्रकार खोजे / घड़े जायेंगे ?
सृष्टि-उत्पत्ति क्रम भी अशास्त्रीय बताया गया है, दर्शनों में जो उत्पत्ति क्रम बताया गया है वह ही मान्य-उचित है |
पं.चक्रपाणि त्रिपाठी जी हिन्दुकुश को याद करते हैं और कहते हैं की “हिन्दूकुश शब्द ....का अर्थ है हिन्दू का वह स्थान जहाँ कुश ही कुश हैं” इस प्रकार के अर्थ गलत हैं | उत्तर :- जिस पर्वत को आप हिन्दू-कुश के नाम से जानते हैं उसे संस्कृत साहित्य में पारियात्र पर्वत के नाम से बतलाया गया है | इतिहास उसे पारियात्र पर्वत कहता था और बाद में यह हिन्दू-कुश के नाम से प्रसिद्ध हो गया | हिन्दू-कुश के आये कुश शब्द का अर्थ होता है क़त्ल करना | कुश शब्द फ़ारसी भाषा का है | इस कुश शब्द का सम्बन्ध संस्कृत के कुश के साथ नहीं है | इस प्रकार जिस स्थान पर हिन्दुओं (मूर्तिपूजकों) का कत्लेआम हुआ हो वह स्थान हिन्दू-कुश कहलायेगा, - जैसे खुद-कुशी | क्या यह हिन्दू-कुश शब्द/नाम/स्थान हमारे लिए गर्व का विषय / स्थान है ? क्या हम चाहेंगे कि हिन्दुओं (मूर्तिपूजकों) का कत्लेआम किया जाता रहे या किया जाये ? हिन्दू-कुश पर्वत नाम भी हिन्दू शब्द/नाम जितना ही प्राचीन है और यह विदेशी शब्द है ना की संस्कृत का |
पं.चक्रपाणि त्रिपाठी जी ने इण्डिया शब्द की भी उत्पत्ति बताई जो की गलत है|
पं.चक्रपाणि त्रिपाठी जी जिन ग्रंथों को आठवीं शती से पूर्व का बता रहें हैं वे सारे के सारे नवीन हैं |
मेरुतंत्र :- मेरु तंत्र का प्रसिद्ध श्लोक हैं |
श्लोक है :- हिन्दू धर्म प्रलोप्तारौ जायन्ते चक्रवर्तिन: |
हीनश्च दुषयप्येव स हिन्दूरित्युच्यते प्रिये ||
इसका अर्थ निम्न प्रकार बताया जाता है:- “आगामी समय में राजा लोग हिन्दू धर्म का नाश करने वाले होंगे और हे प्रिये पार्वती ! हिन्दू लोग हिंसा को दूषित करते हैं, इसलिए इनका नाम ‘हिन्दू’ है |
पाठकों के ज्ञानार्थ बता दूँ कि उपरोक्त ग्रन्थ इस देश में मुसलामानों के आने के बाद बना है | इसको बने हुए ३००-४०० वर्ष ही हुए हैं अतः हिन्दू शब्द/नाम की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए ये प्रमाण उपयुक्त नहीं है |
मेरुतंत्र एक अत्यंत परवर्ती तन्त्रग्रंथ है | उपरोक्त श्लोक मेरुतंत्र के ३३ वें प्रकरण में निम्न प्रकार आता है :-
पञ्चखाना सप्तमीरा नव साहा महाबला: |
हिन्दू धर्म प्रलोप्तारौ जायन्ते चक्रवर्तिन: ||
हीनश्च दुषयप्येव स हिन्दूरित्युच्यते प्रिये |
पूर्वाम्नाये नवशतां षडशीति: प्रकीर्तिता: ||
उपर्युक्त सन्दर्भ में हिन्दू शब्द की जो व्युत्पत्ति दी गयी है वह है ‘हीनं दूषयति स हिन्दू’ अर्थात् ‘जो हिंसा को दूषित करता है’ पर इस वाक्यांश में या श्लोक में कहीं भी हिंसा पद ही नहीं है |
‘हीनं दूषयति स हिन्दू’ का एक और अर्थ किया जाता है कि जो हीन(हीन या नीच) को दूषित समझता (उसका त्याग करता है) वह हिन्दू है | जो अधम या हीन को जाति बहिष्कृत करे वह हिन्दू |
‘हीनं दूषयति’ में हीनम् पद है, जिसका अर्थ है दुर्बल, कमजोर, अधम, नीच और दुष् का अर्थ होगा निन्दा करना या नष्ट करना, अर्थात् कमजोर को सताने वाले को ‘हिन्दू’ कहते हैं | क्या हिन्दू शब्द के समर्थकों को यह स्वीकार्य होगा ? आर्यजन तो हीनों का उद्धार और उपकार ही करते हैं | क्या कोई व्यक्ति अपने आपको ‘कमजोर का सताने वाला’ कहलवा सकता है ?
ऊपर कि व्युत्पत्ति में से जो भी सच हो, इसमें संदेह नहीं कि यह यौगिक व्युत्पत्ति अर्वाचीन है, क्यों कि इसका प्रयोग विदेशी आक्रमणकारियों के सन्दर्भ में किया गया है |
मेरुतंत्र में आये खान और मीर शब्द ही दर्शा रहे हैं की यह ग्रन्थ मुस्लिम आक्रमण के बाद की रचना है ना की प्राचीन | कुछ हिन्दुवादी, मेरुतंत्र में आये खान और मीर शब्द का यह कह कर बचाव करते हैं की हमारे ऋषि-मुनि भविष्य को देख लेते थे और उस घटना का वर्णन अपने ग्रंथों में पहले से ही कर दिया करते थे | लेकिन यदि ऐसा ही है तो फिर ऋषियों के ग्रन्थ में आये मुस्लिम प्रसंगों को हम हेय दृष्टि से क्यों देखें ??? असलियत यह है की ये ऋषियों द्वारा अपने ग्रंथों में उल्लेख नहीं किया है |
पाठकों की सामान्य जानकारी के लिए बता दूँ कि मेरुतंत्र ही वह संस्कृत का पुराना(अपेक्षाकृत) ग्रन्थ है जिसमें हिन्दू शब्द आता है और यही ग्रन्थ है जो हिन्दू-वादियों को अपने बचाव में प्रिय लगता है लेकिन मेरुतंत्र में कुछ अत्यंत आधुनिक शब्दों के व्यवहार से जान पड़ता है कि तंत्रका निर्माण आधुनिक है |
भविष्य पुराण :- आधुनिक ग्रन्थ है जिसमें सन्डे, मंडे आदि का उल्लेख है | इसी के साथ कृपा कर पढ़ें –भविष्य पुराणम् प्रतिसर्गपर्व चतुर्थ खण्ड २८वाँ अध्याय जिसमें लिखा है “न वदेद्यावनीं भाषां प्राणै: कण्ठगतैरपि | ||५३|| अर्थात् “प्राण के कंठ तक चले आने पर भी यावनी (मुसलमानी) भाषा के उच्चारण नहीं करना चाहिए | पर कितने दुःख कि बात है कि पं.चक्रपाणी जी इस शब्द की सिद्धि के लिए श्रम कर रहे हैं |

मेदनी कोष :- यह मेदिनी कोश भी आधुनिक कोश-रचना है अतः प्रामाणिक नहीं है, प्राचीन संस्कृत साहित्य में इसका प्रयोग नहीं मिलता | मेदिनिकर कृत इस मेदिनी कोष का काल १२०० ई. – १२७५ ई. के बीच माना जाता है |
हेमन्त कोषी कोष :- आधिनिक कोष है | निरुक्त या ५वीं शताब्दी के अमरसिंह विरचित “अमरकोश” में तो हिन्दू शब्द नहीं मिलता | इन हेमन्त जैसे आधुनिक कोशों में हिन्दू शब्द/नाम का होना कोई आश्चर्य नहीं है पर इन कोशों से हिन्दू शब्द / नाम की प्राचीनता सिद्ध नहीं होती बल्कि अर्वाचीनता ही सिद्ध हो रही है |
राम कोष :- आधुनिक कोष है
कालिका पुराण :- कालिका पुराण” १०वीं शताब्दी का जैन मत का ग्रन्थ है अतः यह अर्वाचीन ग्रन्थ हिन्दू शब्द की प्राचीनता सिद्ध करने में अक्षम है |
शब्द कल्पद्रुम :- आधुनिक ग्रन्थ है शब्दकल्पद्रुम कोशों में आर्य शब्द के अर्थ भी दिये गये हैं |

बृहस्पति आगम :- बृहस्पति आगम आधुनिक काल का ग्रन्थ है | बृहस्पति आगम ग्रन्थ, वह ग्रन्थ नहीं है जो कि बृहस्पति जी ने लिखा था | इतिहास में एक माननीय बृहस्पति जी हो गये हैं जो राजनीति शास्त्र के विद्वान थे | राजनीति के जिस महान् शास्त्र का उपदेश भगवान् ब्रह्मा ने दिया था, उसे विशालाक्ष शिव ने संक्षिप्त किया | उसी का अति संक्षेप बृहस्पति जी ने किया | यह शास्त्र, बार्हस्पत्य शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ | इस शास्त्र के श्लोक यत्र-तत्र उद्घृत आज भी मिलते हैं |
ख्रीष्ट एरा प्रारंभ होने के आसपास हुए वराहमिहिर जी रचित “बृहत्संहिता” का उद्धरण यदि दिया होता तो कुछ-कुछ मान्य होता लेकिन बृहस्पति-आगम तो नवीन ग्रन्थ है |
कुछ लोग बृहस्पति आगम कि इस व्याख्या के आधार पर हिन्दू धर्म का पूर्ण स्वरुप बनाते है और कहते हैं कि हिन्दू का “हि” अर्थात् हिमालय और “न्दू” का इंदु | क्या ये पूर्ण स्वरुप हैं ? पूर्ण स्वरूप तो तब बनता जब हिन्दू के “हि” “न्” और “दु” का अर्थ बताया जाता | लेकिन पूर्ण स्वरुप बनाते ही प्रश्न होता है कि क्या हिन्दू शब्द किसी अन्य शब्द का संक्षिप्तिकरण हैं क्या ? यदि हाँ तो फिर उस तर्क का क्या होगा जिसमें तर्क देने वाले कहते हैं कि ये सिन्धु शब्द का विकारी है ? दोनों तर्कों में से एक को पसंद करना होगा, दोनों नहीं चलेंगे | लेकिन प्राचीन साहित्य में ना होना भी तो हिन्दू शब्द/नाम पर प्रश्न चिह्न लगाता है |
एक संक्षिप्तिकरण और देखिये :- “हि” “न्” “दु”
“हि” अर्थात् हित ना करे वह
“न्” अर्थात् न्याय ना करे वह
“दु” अर्थात् दुष्टता करे वह
और इसका प्रमाण निम्न श्लोक है :-
हिन्दू शब्द की एक और व्याख्या देखिये जिसमें हिन्दू शब्द का निन्दित अर्थ दिया गया है |
हितम् न्यायम् न कुर्याद्यो , दुष्टतामेव आचरेत्
स पापात्मा स दुष्टात्मा , हिन्दू इत्युच्यते बुधै:||३/२१||
आत्मानम् यो वदेत् हिन्दू, स याति अधमां गतिम् |
दृष्ट्वा स्पृष्ट्वा तु त हिन्दुं, सद्य: स्नानमुपाचरेत् ||७/४७||
हिंकारेण परीहार्य:, नकारेण निषेधयेत् |
दुत्कारेण विलोप्तव्य:, यस्स हिन्दू सदास्मरेत् ||९/१२||
इति कात्थक्य: शिवस्मृतौ शिव स्मृति
(जो हित और न्याय ना करे, दुष्टता का आचरण करे, वह पापी, वह दुष्टात्मा हिन्दू कहलाते हैं)
(जो व्यक्ति अपने आप को हिन्दू कहता है वह अधम गति को प्राप्त होता है और ऐसे हिन्दू को देख कर स्पर्श कर शीघ्र ही स्नान करें)
(हिं हिं करके जिसका परिहार करना चाहिए, न न करके जिसका निषेध करना चाहिए, दूत् दूत् करके जिसे दूर भगाना (नष्ट कर देना) चाहिए वही हिन्दू है इसे सदा याद रखें)
अद्भुत कोष :-हिन्दू शब्द कि व्युत्पत्ति अन्य शब्दकोशों में तो मिली नहीं पर आधुनिक कोश ‘अद्भुत कोश’ में मिल गयी |अद्भुत!! भट्टोजिदीक्षित जी ने भी ‘हिन्दू’ शब्द की सिद्धि नहीं की है और ना कहीं उल्लेख किया है |
पारिजात हरण :- कीर्तनिया शैली का सर्व प्रथम नाटक पारिजात हरण नाटक अलाउद्दीन खिलजी के समकालीन मिथिलानिवासी उमापति उपाध्याय का बनाया हुआ है (१३२५ ई. के लगभग)| और कमाल की बात ये है कि ये श्लोक उस नाटक में है ही नहीं अतः इसका प्रमाण देना व्यर्थ है | उमापति मिश्र का यह नाटक संस्कृत और हिन्दी मिश्रित शैली का सर्व प्रथम प्रमाण है | इस नाटक में वार्तालाप की भाषा संस्कृत है किन्तु समस्त गीत हिन्दी में लिखे गये हैं |उमापति का जन्म दरभंगा जिले के भौर परगना के कोइलख नामक ग्राम में हुआ था और उन्होंने हरिहर देव के राजदरबार का संरक्षण प्राप्त किया | हरिहर देव का समय १३०५ से १३२४ ई.तक माना जाता है इससे सिद्ध होता है कि उमापति सन् १३२४ से पूर्व अवश्य विद्यमान थे |साहित्य में एक और पारिजात हरण नाटक का उल्लेख मिलता है जो कि शंकर देव जी का बनाया है और ये असम में १५ वीं सदी के आसपास हुए थे, यदि उपरोक्त श्लोक को इस नाटक का मान भी लें तो हिन्दू शब्द की प्राचीनता सिद्ध नहीं होती |
शांग्धर पद्दति :- आश्चर्य कि बात तो ये कि कालिका पुराण और शारंगधर पद्धति दोनों ग्रन्थ के शब्दों में लगभग समानता है, और एक शब्द ‘यवन’ का प्रयोग है | यहाँ ‘यवन’ शब्द किस सन्दर्भ में प्रयुक्त है यह विचारणीय है | शारंगधर पद्धति में तो वेदमार्ग भी शब्द है तो क्यों ना हम अपने धर्म को वेदमार्गी कहें ? उल्लेखनीय है की “शारंगधर पद्धति” १३६३ ई. की रचना है | दूसरी बात यह है की शारंगधर पद्धति में आर्यावर्त पद है और अर्वाचीन राजाओं का नाम निर्देश भी है |
माधव दिग्विजय :- आधुनिक ग्रन्थ है
वृद्ध स्मृति :- वृद्धस्मृति सच में वृद्ध है या युवा उसका भी कोई पता नहीं है | दूसरी बात ये कि वेदों के पश्चात राजनैतिक धर्म शस्त्र के पण्डित मनु हुए हैं | जिनकी स्मृति विद्यमान है | यद्यपि स्मृतियाँ संख्या में १८ हैं परन्तु सब में मनु की प्रशंसा है | इसी को श्रेष्ठ माना गया है |
इस प्रकार श्री चक्रपाणि त्रिपाठी जी ने एक भी प्रमाण प्राचीन ग्रन्थ का नहीं दिया इसलिए हिन्दू शब्द शास्त्रीय सिद्ध नहीं होता, संस्कृत शब्द सिद्ध नहीं होता |
वयं राष्ट्रे जागृयाम