अंततः बाबा जी ने अपनी अनशन तोड़ दी | कांग्रेस की भी अच्छी खासी फजीहत हुयी हैं पर बाबा रामदेव की छवि भी राजनैतिक विस्लेशको को आलोचना करनी पड़ेगी भले ही वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनके साथ हो | बाबा के समर्थकों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता क्यों की समर्थक अपने नेता के दोष नहीं दिखते | जो थोड़े बहुत चिंतनशील समर्थक होंगे वे शायद बाबा की गलतियों को नजरअंदाज ना कर सके | जी हां हार , बाबा बुरी तरह हार गए | हर कदम पर , निश्चित तौर पर ये अंत नहीं शुरुआत हैं आशा करूँगा वे अंत में जीते | जिस मकसद को ले कर उन्होंने अनशन शुरू करी थी उसे बिना मंजूर कराये ही उन्होंने अपनी अनशन तोड़ दी तो ये हार ही हुयी उनकी | फिर बाबा की राजनैतिक अपरिपक्यता भी दिख गई | हम चर्चा करते हैं बाबा की शुरूआती हार के कारणों को जानने का |
१. सत्याग्रह का गाँधीवादी तरीका अपनाना |
सत्याग्रह यानी सत्य बात का आग्रह | इसमें खाना ना खा कर अपनी बात मनवाने का तरीका अप्रत्यक्ष हिंसा की धमकी होता हैं और कुछ नहीं | यानी अगर मैं मर गया तो मेरे बाद हिंसा हो जायेगी | मोहनदास गाँधी यही करता रहा हैं पर उसकी मांगो से गाँधी की प्रसिद्धि बढती थी जिसका बाद में बर्तानिया सरकार लाभ उठाती थी गाँधी से अपनी शर्तों पर हस्ताक्षर करवा के | बाबा भी गाँधी की रहा पर चल रहे हैं | हिंदू मुस्लिम एकता की बात करना अच्छी बात हैं, ये १८५७ में आई थी जब हिंदू क्रन्तिकारी मुग़ल बादशाह के लिए लड़े थे | तब जा कर मुसलमानों ने साथ निभाने का अपना वादा निभाया था उसके बाद से तो हिंदू मुस्लिम एकता के प्रयास महात्मा(कथित) गाँधी द्वारा होते रहे और नतीजतन हमें पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान मिला लाखो हिन्दुओ की लाशो पर | बाबा ने अपने मंचों पर मुस्लिम नेताओ को लाने का प्रयास किया पर रात को जब लाठिया खाने का वक्त आया तो एक भी मुस्लिम नेता उनके साथ ना था | ठीक वैसे ही जैसे रात को नोआखाली में सुरहवर्दी गाँधी का साथ छोड कर अपनी हवेली में निकल जाता था | फिर बाबा खाना खाए या ना खाए सरकार को क्या फर्क पड़ता हैं बाबा कौन गाँधी की तरह सरकार के अजेन्ट थे, हां उन्होंने गुप्त समझौता कर के जरुर गलती की |
२. कांग्रेस के झांसे में आकार गुप्त समझौता करना |
बाबा निजी विमान से उतरे चार केंद्रीय मंत्री उन्हें लेने आये | सरकार सत्याग्रह के एक दिन पूर्व से ही मनाने में लग गयी या कहे अपने जाल में फ़साने में लग गई | अपनी आव भगत देख कर बाबा को भी लग रहा होगा के सत्ता के विरोध में जाने पर भी बाबा को इतना सम्मान मिल रहा हैं | दिग्विजय सिंह के बयान फिर भी आते रहे बाबा को जरुरत से ज्यादा भाव दिए जा रहे हैं और सोनिया-राहुल सोची समझी रणनीति अनुसार चुप रहे | प्यार से स्वागत और बेइज्जती करके निकालना | पर स्वागत पर बाबा पानी में चढ गए और लिखित में दे दिया गया के दूसरे दिन दोपहर तक घोषणा कर देंगे और २ दिन तप करेंगे | बाबा को जनता में भी तो जवाब देना था सो कुछ तो दिखाना ही था जब के अनशन का कोई तुक नहीं बनता था लिखित देने के बाद | ये धोखा ना हुआ अपने अनुयायियों के साथ ?
३. बाबा की राजनैतिक अपरिपक्यता
बाबा ने खुद तो लिखित दे दिया क्या कांग्रेस से कुछ लिया ? की बस कांग्रेस के शब्दों पर ही उन्हें अपार विश्वास था और उसे ही समझौता मान लिया | फिर जो कहा था वो करते , तो भी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती थी हालाकि बाबा के पास कोई प्रमाण तो दिख नहीं रहा जिस से कहते के कांग्रेस ने उनकी बात मान ली | फिर भी अगर बाबा लिखित ना देते या जैसा लिखित दिया था वैसा ही करते तो भी कांग्रेस इस तरह निहथे लोगो पर हमला करवाने की हिम्मत जुटाने में संकोच करती | पर कांग्रेस के काले अंग्रेजो की असलियत तो सामने आ ही गयी |
४. अन्ना हजारे से प्रतियोगिता
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५. बाबा का संतुलित ना बोलना
यजुर्वेद २३ . २५ में साफ़ लिखा हैं “हे ब्राह्मण ! तू अधिक मत बोल |” बाबा के बयान परिस्थिति विपरीत ही रहे हैं | बाबा का एक बयान के फलाने ने मुझे देखो कहा ब्लदी इंडियन अखबार के पहले प्रष्ठ पर था पर भारत स्वाभिमान के राजीव दिक्षित के देहांत पर बाबा का एक भी बयान अखबार में ना आना बेहद ही संशयात्मक परिस्थिया पैदा करता हैं अतः उनके निधन के कारणों में बाबा को भी संदेहे से बाहर नहीं रखा जा सकता | तो जहा अति आवश्यक हो वही बोलना चाहिए राजीव दिक्षित खुल के कांग्रेस की नेहरु गाँधी परिवार की पोल खोल के जड़ खोद रहे थे | वह निश्चित तौर पर कांग्रेस के सबसे बड़े शत्रु थे और उनकी मृत्यु एक बड़ा अजेंडा होना चाहिए थी | बाबा ने अनशन से पहले बड़े-बड़े बयान दिए | ऐसा लग सकता हैं के डर नाम की चीज़ नहीं हैं पर जब शौर्य दिखाने का वक्त आया तो अपने शब्द अनुरूप ना निकले | वही सोनिया और राहुल अपने हिंदू विरोधी बयानों को दिग्विजय नाम के कथित हिंदू के मू का प्रयोग कर के जनता तक पंहुचा देते हैं | देखिये सोनिया गाँधी कितना संतुलित बोलती हैं और कितने कम साक्षात्कार देती हैं | बाबा को राजनीती में आना हैं तो उन्हें राजनितिक ज्ञान लेना होगा | और इतिहास पर भी पकड़ बनानी होगी और ऐसा ना कर सके तो खुद पीछे रह कर योग्य नेतृत्व को समर्थन दे सब कुछ खुद करने के चक्कर में ना रहे | फिर इतनी जल्दी ११००० युवाओ को सशस्त्र सैन्य प्रशिक्षण देने का बयान देना बड़बोला बन ना कहे तो क्या कहे ? क्यों की ये काम कहे के नहीं किये जाते |
६. बाबा का स्त्री वेश में जान बचा कर भागना
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७. अंततः अनशन तोडना और भविष्य में अनशन का मार्ग खत्म
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काला धन का मुद्दा राष्ट्र हित का हैं हां इस से भी बड़ा मुद्दा भारत का इस्लामीकरण हैं पर वह उठाने का साहस शायद ही कोई करे | अंत में जनता ही पीटी और जवाब सिर्फ इतना रहा के हमारी जंग भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी रहेगी | अब बाबा जो भी मुद्दा उठाये समझौता वादी मानसिकता को किनारे रख दे |
आर्य विचारों से उन्होंने समझौता कर लिया ये तो हम देख चुके हैं उनका मूर्ति को माला पहनाना देख कर | सन्यास धर्मं का भी अच्छे से पालन नहीं कर रहे हैं, कम से कम कोई काम तो पूर्ण करे | आशा हैं बाबा अब अपनी पार्टी बनाने का विचार त्याग देंगे और कांग्रेस को हर हाल में २०१४ में बाहर करने लिए बी जे पी का समर्थन करेंगे | हा उनके ऐसा करने पर उन लोगो को जरुर कष्ट होगा जिन्होंने सोचा होगा के बी जे पी का टिकट तो मिलने से रहा बाबा के दल में पहले से जुड कर टिकट की सम्भावना बढ़ जाएँगी | क्यों के ज्यादातर बी जे पी वाले और आर्य समाजी ही बाबा के साथ आये हैं | कांग्रेस के वोट बैंक पर भगवा पहन कर सेंध मारी करना आसान नहीं | बाबा भले ही हिंदुत्व की बात करने से बचते रहे पर कांग्रेस कैसे ना कैसे उन पर सांप्रदायिक होने का इल्जाम लगा देगी | महत्वपूर्ण तो ये हैं के बाबा को हिंदुत्व की बात करने में साम्प्रदायिकता नहीं दिखनी चाहिए | बाबा चाहे तो अपने ट्रस्ट की धनराशि से पूर्वी भारत में धर्मान्तरण रोकने और धर्मान्तरित हुए हमारे भाई बहेनो को वापस लाने में आर. एस. एस. एवं वी. एच. पी. की मदद कर सकते हैं | खैर बाबा कामयाम हो या ना हो पर कांग्रेस जरुर अपने पतन पर पहुच रही हैं और आने वाले वर्षों में इसका नामो निशाँ मिट जायेगा ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास हैं | क्यों की हिंदू विरोधी आर्य भूमि पर ज्यादा दिन नहीं टिके हैं |