अंततः बाबा जी ने अपनी अनशन तोड़ दी | कांग्रेस की भी अच्छी खासी फजीहत हुयी हैं पर बाबा रामदेव की छवि भी राजनैतिक विस्लेशको को आलोचना करनी पड़ेगी भले ही वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनके साथ हो | बाबा के समर्थकों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता क्यों की समर्थक अपने नेता के दोष नहीं दिखते | जो थोड़े बहुत चिंतनशील समर्थक होंगे वे शायद बाबा की गलतियों को नजरअंदाज ना कर सके | जी हां हार , बाबा बुरी तरह हार गए | हर कदम पर , निश्चित तौर पर ये अंत नहीं शुरुआत हैं आशा करूँगा वे अंत में जीते | जिस मकसद को ले कर उन्होंने अनशन शुरू करी थी उसे बिना मंजूर कराये ही उन्होंने अपनी अनशन तोड़ दी तो ये हार ही हुयी उनकी | फिर बाबा की राजनैतिक अपरिपक्यता भी दिख गई | हम चर्चा करते हैं बाबा की शुरूआती हार के कारणों को जानने का |
१. सत्याग्रह का गाँधीवादी तरीका अपनाना |
सत्याग्रह यानी सत्य बात का आग्रह | इसमें खाना ना खा कर अपनी बात मनवाने का तरीका अप्रत्यक्ष हिंसा की धमकी होता हैं और कुछ नहीं | यानी अगर मैं मर गया तो मेरे बाद हिंसा हो जायेगी | मोहनदास गाँधी यही करता रहा हैं पर उसकी मांगो से गाँधी की प्रसिद्धि बढती थी जिसका बाद में बर्तानिया सरकार लाभ उठाती थी गाँधी से अपनी शर्तों पर हस्ताक्षर करवा के | बाबा भी गाँधी की रहा पर चल रहे हैं | हिंदू मुस्लिम एकता की बात करना अच्छी बात हैं, ये १८५७ में आई थी जब हिंदू क्रन्तिकारी मुग़ल बादशाह के लिए लड़े थे | तब जा कर मुसलमानों ने साथ निभाने का अपना वादा निभाया था उसके बाद से तो हिंदू मुस्लिम एकता के प्रयास महात्मा(कथित) गाँधी द्वारा होते रहे और नतीजतन हमें पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान मिला लाखो हिन्दुओ की लाशो पर | बाबा ने अपने मंचों पर मुस्लिम नेताओ को लाने का प्रयास किया पर रात को जब लाठिया खाने का वक्त आया तो एक भी मुस्लिम नेता उनके साथ ना था | ठीक वैसे ही जैसे रात को नोआखाली में सुरहवर्दी गाँधी का साथ छोड कर अपनी हवेली में निकल जाता था | फिर बाबा खाना खाए या ना खाए सरकार को क्या फर्क पड़ता हैं बाबा कौन गाँधी की तरह सरकार के अजेन्ट थे, हां उन्होंने गुप्त समझौता कर के जरुर गलती की |
२. कांग्रेस के झांसे में आकार गुप्त समझौता करना |
बाबा निजी विमान से उतरे चार केंद्रीय मंत्री उन्हें लेने आये | सरकार सत्याग्रह के एक दिन पूर्व से ही मनाने में लग गयी या कहे अपने जाल में फ़साने में लग गई | अपनी आव भगत देख कर बाबा को भी लग रहा होगा के सत्ता के विरोध में जाने पर भी बाबा को इतना सम्मान मिल रहा हैं | दिग्विजय सिंह के बयान फिर भी आते रहे बाबा को जरुरत से ज्यादा भाव दिए जा रहे हैं और सोनिया-राहुल सोची समझी रणनीति अनुसार चुप रहे | प्यार से स्वागत और बेइज्जती करके निकालना | पर स्वागत पर बाबा पानी में चढ गए और लिखित में दे दिया गया के दूसरे दिन दोपहर तक घोषणा कर देंगे और २ दिन तप करेंगे | बाबा को जनता में भी तो जवाब देना था सो कुछ तो दिखाना ही था जब के अनशन का कोई तुक नहीं बनता था लिखित देने के बाद | ये धोखा ना हुआ अपने अनुयायियों के साथ ?
३. बाबा की राजनैतिक अपरिपक्यता
बाबा ने खुद तो लिखित दे दिया क्या कांग्रेस से कुछ लिया ? की बस कांग्रेस के शब्दों पर ही उन्हें अपार विश्वास था और उसे ही समझौता मान लिया | फिर जो कहा था वो करते , तो भी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती थी हालाकि बाबा के पास कोई प्रमाण तो दिख नहीं रहा जिस से कहते के कांग्रेस ने उनकी बात मान ली | फिर भी अगर बाबा लिखित ना देते या जैसा लिखित दिया था वैसा ही करते तो भी कांग्रेस इस तरह निहथे लोगो पर हमला करवाने की हिम्मत जुटाने में संकोच करती | पर कांग्रेस के काले अंग्रेजो की असलियत तो सामने आ ही गयी |
४. अन्ना हजारे से प्रतियोगिता
निश्चित तौर पर अन्ना हो या बाबा मुद्दे दोनों के ही जन हित के हैं | पर इतनी जल्दी दिखाना बाबा के स्वय केंद्रित होने का सूचक हैं | शुरुआत बाबा ने की और श्रेय अन्ना लिए जा रहे हैं इस तरह की कुंठा उनके स्वय के लिए अहितकारी सिद्ध हुयी | ये २०१४ के करीब का समय नहीं था जो बाबा समर्थित दलों को लाभ मिलता | हां अभी सत्याग्रह सफल हो जाने से बाबा का राजनैतिक मंच जरुर मजबूत हो जाता पर राजनैतिक मंच से समाज सेवा बाहर से नहीं होती | क्यों के आप अपने विरोधी के समतुल्य हो जाते हैं राजनीती में आने के प्रण से | अन्ना ने अपने बयान में साफ़ कहा के मेरा राजनीती में आने का कोई इरादा नहीं इसी आधार पर उनके साथ कांग्रेस विरोधी जैसा व्यहवार नहीं कर पाई |
५. बाबा का संतुलित ना बोलना
यजुर्वेद २३ . २५ में साफ़ लिखा हैं “हे ब्राह्मण ! तू अधिक मत बोल |” बाबा के बयान परिस्थिति विपरीत ही रहे हैं | बाबा का एक बयान के फलाने ने मुझे देखो कहा ब्लदी इंडियन अखबार के पहले प्रष्ठ पर था पर भारत स्वाभिमान के राजीव दिक्षित के देहांत पर बाबा का एक भी बयान अखबार में ना आना बेहद ही संशयात्मक परिस्थिया पैदा करता हैं अतः उनके निधन के कारणों में बाबा को भी संदेहे से बाहर नहीं रखा जा सकता | तो जहा अति आवश्यक हो वही बोलना चाहिए राजीव दिक्षित खुल के कांग्रेस की नेहरु गाँधी परिवार की पोल खोल के जड़ खोद रहे थे | वह निश्चित तौर पर कांग्रेस के सबसे बड़े शत्रु थे और उनकी मृत्यु एक बड़ा अजेंडा होना चाहिए थी | बाबा ने अनशन से पहले बड़े-बड़े बयान दिए | ऐसा लग सकता हैं के डर नाम की चीज़ नहीं हैं पर जब शौर्य दिखाने का वक्त आया तो अपने शब्द अनुरूप ना निकले | वही सोनिया और राहुल अपने हिंदू विरोधी बयानों को दिग्विजय नाम के कथित हिंदू के मू का प्रयोग कर के जनता तक पंहुचा देते हैं | देखिये सोनिया गाँधी कितना संतुलित बोलती हैं और कितने कम साक्षात्कार देती हैं | बाबा को राजनीती में आना हैं तो उन्हें राजनितिक ज्ञान लेना होगा | और इतिहास पर भी पकड़ बनानी होगी और ऐसा ना कर सके तो खुद पीछे रह कर योग्य नेतृत्व को समर्थन दे सब कुछ खुद करने के चक्कर में ना रहे | फिर इतनी जल्दी ११००० युवाओ को सशस्त्र सैन्य प्रशिक्षण देने का बयान देना बड़बोला बन ना कहे तो क्या कहे ? क्यों की ये काम कहे के नहीं किये जाते |
६. बाबा का स्त्री वेश में जान बचा कर भागना
मैं एक ऐसे आर्य समाजी को जानता हू जो पहले कहता था के बड़ा दुःख होता हैं जब पुरुष स्त्री वेश में नाटक करते हैं तो बड़ा ही शर्मनाक होता हैं आजकल वहा बाबा जी का अनुयाय कर रहे हैं | बाबा का ये आचरण उनके मस्तिष्क पर कितना प्रभावशाली रहा होगा ये देखना होगा | एक वह ऋषि दयानंद था जो अकेले ही काशी के ३०० पंडितो से शाश्त्रार्थ निर्भीक हो के करता था | अगर वह ये आन्दोलन चला रहे होते तो क्या ऐसे भागते | प्रथम तो उनका सत्याग्रह भूख हड़ताल का रूप ना लेता | और अगर भीड़ में ५००० क्या ५ लाख जवान भी आते तो भीड़ में छुपाने के बजाये ऋषि दयानंद सामने आ कर दहाड़ते के लो मैं सामने हू जो कर सकते हो कर के दिखाओ | नेता वो होता हैं जो जनता के लिए मर मिटे वो नहीं जो जनता के बीच में जाकर अपनी जान बचाए| बाबा अगर गिरफ्तार किये जाते तो जेल भरो आन्दोलन करने का भारत स्वाभिमान को अच्छा मौका मिलता | स्त्री वेश में कांग्रेस की गिरफ्त से बच के भागने वाला नेता कितना अनुकरणीय हैं आर्य समाजियो के लिए ये प्रश्नात्मक चिन्ह हैं |
७. अंततः अनशन तोडना और भविष्य में अनशन का मार्ग खत्म
बाबा को साफ़ जवाब मिल गया | सरकार सुनने वाली नहीं थी निश्चित तौर पर कांग्रेस चाहती हैं के बाबा रामदेव मर जाये क्यों की सबसे ज्यादा काला धन कांग्रेस का ही स्विस बैंक में हैं | राजीव गाँधी जो धन छोड गए उसके अतिरिक्त सोनिया गाँधी द्वारा बनाया गया धन भी वही युरोप पंहुचा हैं | अब बाबा अगर अनशन नहीं तोड़ते हैं और मारे जाते हैं तो कांग्रेस की रहा आसान होती | अनशन तोड़ते हैं तो आगे मुश्किल कांग्रेस के लिए खड़ी कर सकते हैं पर अनशन का रास्ता भविष्य में किस मू से अपनाएंगे ? एक सच्चे आर्य नेता के लिए अपनी जान का कोई महत्व नहीं होता | खैर ये बुद्धिमत्ता का परिचय दिया और अपनी जान बचाई उन्होंने पर अब उन्हें नए तरीके अपनाने होंगे और अन्ना से प्रतिद्वन्दता छोडनी होगी |
काला धन का मुद्दा राष्ट्र हित का हैं हां इस से भी बड़ा मुद्दा भारत का इस्लामीकरण हैं पर वह उठाने का साहस शायद ही कोई करे | अंत में जनता ही पीटी और जवाब सिर्फ इतना रहा के हमारी जंग भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी रहेगी | अब बाबा जो भी मुद्दा उठाये समझौता वादी मानसिकता को किनारे रख दे |
आर्य विचारों से उन्होंने समझौता कर लिया ये तो हम देख चुके हैं उनका मूर्ति को माला पहनाना देख कर | सन्यास धर्मं का भी अच्छे से पालन नहीं कर रहे हैं, कम से कम कोई काम तो पूर्ण करे | आशा हैं बाबा अब अपनी पार्टी बनाने का विचार त्याग देंगे और कांग्रेस को हर हाल में २०१४ में बाहर करने लिए बी जे पी का समर्थन करेंगे | हा उनके ऐसा करने पर उन लोगो को जरुर कष्ट होगा जिन्होंने सोचा होगा के बी जे पी का टिकट तो मिलने से रहा बाबा के दल में पहले से जुड कर टिकट की सम्भावना बढ़ जाएँगी | क्यों के ज्यादातर बी जे पी वाले और आर्य समाजी ही बाबा के साथ आये हैं | कांग्रेस के वोट बैंक पर भगवा पहन कर सेंध मारी करना आसान नहीं | बाबा भले ही हिंदुत्व की बात करने से बचते रहे पर कांग्रेस कैसे ना कैसे उन पर सांप्रदायिक होने का इल्जाम लगा देगी | महत्वपूर्ण तो ये हैं के बाबा को हिंदुत्व की बात करने में साम्प्रदायिकता नहीं दिखनी चाहिए | बाबा चाहे तो अपने ट्रस्ट की धनराशि से पूर्वी भारत में धर्मान्तरण रोकने और धर्मान्तरित हुए हमारे भाई बहेनो को वापस लाने में आर. एस. एस. एवं वी. एच. पी. की मदद कर सकते हैं | खैर बाबा कामयाम हो या ना हो पर कांग्रेस जरुर अपने पतन पर पहुच रही हैं और आने वाले वर्षों में इसका नामो निशाँ मिट जायेगा ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास हैं | क्यों की हिंदू विरोधी आर्य भूमि पर ज्यादा दिन नहीं टिके हैं |
U are a congress supporter and by the way , you must read the history of Gandhi's Satyagrah which were nothing but POLITICAL DRAMAS SPONSORED BY BRITISH GOVERNMENT AND CONGRESS , CONGRESS IS NOTHING BUT AN ASSOCIATION OF CORRUPTED, GUNDAS AND MENTALLY ILL PEOPLE .
ReplyDeleteये आदमी कुछ नहीं कर सकता, आप कर पाओगे तभी जब ब्रह्म की उपासना करोगे, और ब्रह्म के निकट जाने का अभ्यास नित्य करोगे तभी हिंदुत्व का उद्धार होगा. आज से शुरू करियो. ब्रह्म ही आपको आपकी रह दिखा सकते हैं तो उपासना और हवन आवश्यक है.
ReplyDeleteबाबा की हार नहीं हुई है यह आन्दोलन पुरी तरह सेर सफल रहा है .पहले आप यह तो पता कर लीजिये की रामलीला मैदान में हुआ क्या था ??
ReplyDelete5 JUNE रामलीला मैदान :एक छिपा हुआ सत्य एक प्रत्यक्षदर्शी के शब्दों में
Baba me jab tak maut ka dar hai koi andolan saphalta purwak nahi kar sakte
ReplyDeleteMaut toh kevel Ishwar ke hath hai is baat itna bada yogi ab tak nahi samjh paya toh oon ka gyan aur yog bhi oon ki taraha Jhoota hi hai
किसी भी आन्दोलन को सफल होने में कई साल लग जाते हैं . १८५७ में आजादी की पहली जंग लड़ने के ९० साल बाद १९४७ में आज़ादी हासिल हो सकी थी . इस बीच अनेकों आन्दोलन , क्रांतिकारी घटनाएं एबम ब्याक्तिगत प्रयास हुए , जिन में में से कुछ को सफल और कुछ असफल कहा जा सकता है . बाबा जी के भूख हड़ताल करने से लोग रिश्बत लेना छोड़ देंगे - ऐसे परिणाम की अपेक्षा करना भी मुर्खता ही होगी . अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आन्दोलन के बाद जानता में जागरूकता आयी है .भ्रष्टाचार से हम सभी दुखी तो थे लेकिन कोई खुल कर बात नहीं कर पाता था , अब कम से कम इस पर खुल कर बात तो होने लगी है , भ्रष्टाचार किसी भी क़ानून या किसी लोकपाल के आ जाने से ख़तम नहीं होगा , ये केबल जनता की जागरूकता से ही नियंत्रित (ख़तम होने की तो आशा न ही करें) हो पायेगा .
ReplyDelete@Naveen Verma ji
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने | इसीलिए मैंने लिखा भी के अन्ना और बाबा दोनों के मुद्दे जन हित के हैं | पर ये प्रश्न उठ जाता हैं के जो लोग ये मुद्दे उठा रहे हैं वे किस स्तर पर इमानदारी का पालन कर रहे हैं | एक ईमानदार नेता पर उगली उठाना उतना सरल नहीं होता | जनता जागरूक जरुर होगी पर वह भी कही ना कही हिस्सा हैं इस भ्रष्टाचार की | देश में भ्रष्टाचार लोकतंत्र के साथ ही जड़ पकड़ रहा हैं दुखद बात ये हैं के भ्रष्टाचार सिर्फ एक मुद्दा बन के रहे गया हैं | इसका तो जड़मूल से इलाज तब हो सकता हैं जब जनता को चरित्र निर्माण की शिक्षा दी जाए | वर्ना अगर बाबा रामदेव को भी प्रधान मंत्री बना दिए जाए तो भी भ्रष्टाचार से उनका मंत्रिमंडल नहीं बच पाएगा भले ही वे इस मुद्दे को उठा के सत्ता में आए हो | खैर कोई भी दल कितना ही बड़ा चोर क्यों ना हो कांग्रेस के भ्रष्टाचार का कोई मुकाबला नहीं कर सकता | कांग्रेस को धुल चटाने का अच्छा मौका था फिर भी कांग्रेस विरोध को नयी धार मिली हैं यही सकारात्मक पक्ष रहा आन्दोलन का |
आप ने बिलकुल ठीक कहा है - हम भी तो यही तो कह रहे हैं बाबा रामदेव या अन्ना हजारे कोई सुपर-मैन नहीं हैं जो रातों रात सब बदल देंगे . हम ये कहे की बाबा के अनशन के बाद भी रिश्वत ख़तम तो हुयी नहीं इस लिए बाबा का आन्दोलन फेल हो गया तो यह हमारी ही बेबकूफी है . ऐसे आंदोलनों से लोग उस बस बिषय पर बात करने लगे जिस को लेकर आन्दोलन किया है तो समझो की आन्दोलन सफल है.
ReplyDelete@नवीन वर्मा जी
ReplyDeleteबाबा का आदोलन काले धन को वापस लाने का था ना की भ्रष्टाचार खत्म करने को लेकर | अन्ना हजारे का आन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाने के लिए था | और सरकार लोकपाल विधेयक पर काम कर रही हैं भले ही दोष पूर्ण कानून लाये कानून बनेगा ये तय हैं और अन्ना उस पर भी आक्रामक हैं | काला धन अगर वापस आ जाता तो बाबा का आन्दोलन भी सफल कहा जाता | सकतेये सब तो दिल को तसल्ली देने वाली बाते हैं के लोग जागरूक हो गए तो आन्दोलन सफल हो गया | भारत छोडो आन्दोलन (१९४२) के लिए हम ये कहे के सफल कहे दे के लोग जागरूक हो गए थे तो ये मूर्खतापूर्ण होगा | सकारात्मक पक्ष सफलता को नहीं कहते हर आन्दोलन के दो पक्ष तो होते ही हैं इसके भी हैं | जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो कार्य प्रारंभ किया जाता हैं उसकी प्राप्ति ही सफलता कही जाती हैं | अन्ना तो बन रहे कानून के लिए फिर से हमला करने जा रहे हैं पर बाबा अब क्या करेंगे क्यों की भविष्य में उन्होंने अनशन करने की नैतिकता खो दी हैं |
बाबा जी प्रथम तो आमरण अनशन कहे के सत्याग्रह प्रारंभ किया और बीच में ही उन्हें अपनी अनशन तोडनी पड़ी क्यों की उनका जीवित रहना भी आवश्यक था | आमरण अनशन का तो बस कहने का फैशन चला हैं | ये लेख आन्दोलन की समीक्षा मात्र हैं | लोग ज्यादा दिन तक चीज़े याद नहीं रख पाते चुनाव काल तक लोग काफी कुछ भूल गए होंगे | अन्ना की तुलना में बाबा को अधिक समर्थन जरुर मिला उनमे ज्यादातर बाबा के भक्त थे उनसे बौधिक वर्ग कटा रहा हैं अपने मौन समर्थन के साथ वे भी दूर रहे जो अन्ना का समर्थन करते थे ऐसा बाबा के खुद के राजनितिक महत्वाकांक्षा की वजह से भी हो सकता हैं | खुद विदेशी का विरोध करने वाले बाबा अपनी कंपनी के उत्पादों की पैकिंग का कांट्रेक्ट एक विदेशी कंपनी को देते हैं तो कैसे उन्हें ईमानदार माना जाए |
स्वदेशी बाबा का विदेशी कंपनी से करार
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=30&edition=2011-06-27&pageno=14
अंतिम सांस तक भ्रष्टाचार से लड़ेंगे: रामदेव
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_7931449.html
जब मौका था तब क्यों न लड़े अंतिम सास तक |
अन्ना भी जानते हैं कमजोर कड़ी साथ जोडेंगे तो जंजीर टूट सकती हैं शायद इसीलिए......
रामदेव के सामने अन्ना ने रखी शर्ते
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/Hazare-puts-conditions-Ramdev-join-fast_5_1_7927285.html
@ Ved Arya ji
ReplyDeleteमै तो खुद बार-बार यहि कह रहा हूँ - कि रामदेव जी या अन्ना जी सुपर मैन नहीं हैं , बस इन जैसे लोगों कि बजह से लोग खुल कर बिरोध जताने लगे हैं. ऐसे तो मंगल पण्डे, रानी झाँसी , सरदार भगत सिंह, उधम सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद आदि सभी को असफल माना जाएगा क्योंकि बो सभी देश को आज़ाद नहीं करा पाए थे और अंग्रेजों द्वारा मार दिए गए थे. लेकिन उन को देख कर अनेकों और लोग खड़े होते गए और ९० सालों में अनेकों लोगों के कम या अधिक प्रयासों कि बजह से हम गुलामी से आज़ाद हो सके थे
राम देव जी , अन्ना जी, किरण बेदी जी आदि जो कुछ कर पाए हैं ये उन कि सीमा है . आने वाले समय में कोई राम, कोई श्याम, कोई वेद आर्य , ...... आगे जाकर उन से भी बढ़कर कुछ करेंगे और देश को इस भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाएंगे .
और हाँ एक बात और कहना चाहता हूँ कि - विदेश के साथ व्यापार करना (उनसे कुछ खरीदना या उन को कुछ बेचना) और काले धन को विदेश में छुपाकर रखना दोनों में बहुत फर्क है .
@Naveen Verma जी
ReplyDeleteआपकी बात का भाव मैं समझ गया था पूर्व में ही | कुछ ना करने से कुछ करना बहतर हैं और शुरुआत के लिए हमें समाज सेवियो का साधूवाद करना होगा , इस पर भी मैं आपके साथ हू | यहाँ हमारी और आपकी चर्चा का विषय बस इतना हैं के किन कारणों से हमें सफलता नहीं मिली और जो भी कारण चर्चा से निकले अगर वो सत्य हैं तो हमें उनको सुधारना होगा |हमारे प्रयासों में इमानदारी रहनी चाहिए | मंगल पाण्डेय या रानी झांसी ने जो लड़ाई लड़ी उसमे उन्हें हार मिली और ये हमें स्वीकार करना चाहिए | अगर ५७ की क्रांति जीत जाते तो दिल्ली में मुगलों का हरा झंडा लहराता | इसी कारण मराठो , राजपूतो और सिखों ने साथ नहीं दिया और क्रांति उत्तर भारत तक सिमित रहे गई | अगर हम मुस्लिमो का साथ लेने के बजाय सिर्फ हिन्दुओ को साधते तो हमें कामयाबी मिलती | एक साधे सब साधे, सब साधे सब जाए | उस हार का लाभ बस इतना मिला के हडसन(सम्भवतः यही नाम था) ने मुग़ल बादशाह जफ़र के दोनों लडको का कटा हुआ सर रंगून भेज दिया मुगलों का मनोबल तोड़ने को | सो आज मुग़ल वंश खत्म हैं | यहाँ कोई मंगल पाण्डेय या रानी झाँसी की ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाता | कोई डरा नहीं और आखिरी दम तक लड़े ये उनका इमानदार प्रयास था | पर बाबा जी अपनी हार का कारण स्वम रहे |
विदेश से व्यापर मैंने इसलिए लिखा के लोग जान सके की बाबा जी की कथनी और करनी में कितना भेद हैं | ईमानदारी सिर्फ रुपयों का घपला ना करने को नहीं कहते | जो जुबान पर हो वही आचरण में हो ये इमानदारी हैं और जिसमे ये बात नहीं होगी वहा व्यक्ति ईमानदार नहीं कहा जाएगा | स्वदेशी-२ की बात करने वाले अचानक विदेशी पर कैसे आ गए ? कई बार हमारी हार का कारण हमारे नेता रहे हैं , जैसे भोले भाले हिन्दुओ ने गाँधी को इतना सर पर चढा लिया के गाँधी से ज्यादा किसी ने इस देश को नुक्सान नहीं पहुचाया | तलवार की मुठ टूट जाए तो खुद को घायल कर देती हैं |
कोई कम बेईमान हैं कोई बहुत ज्यादा हैं | पर भ्रष्टाचार के खिलाफ वही जीत पाएगा जो भीतर से बाहर तक शुद्ध हो | जिसकी कथनी करनी में भेद ना हो और जो नीतिवान हो |
मै आप की बात से पूरी तरह सहमत हूँ, केवल इतना ही कहना चाह रहा हूँ, आगे बढ़ कर काम करने बालों की निंदा न करके उनकी अच्छाई और बुराई दोनों से सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए . अक्सर ऐसी चर्चा भी होती है - जहाँ कोई 'गांधी जी' की प्रशन्सा के लिए 'सुभाष जी' की निंदा करता है अथवा 'सुभाष जी' प्रशन्सा के लिए 'गाँधी जी' जी की निंदा करता है तो मै दोनों को ही बातों को पसंद नहीं करता . ऐसे ही लोग कभी 'नेहरु जी' और 'सरदार पटेल जी ' की या आज कल 'रामदेव जी' और 'अन्नाजी' की चर्चा करते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता . आज हम छोटी छोटी बातों पर घर में एकमत नहीं हो पाते हैं तो हम अलग अलग माहौल से आने बालो से एकमत होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं. हम को बस ये देखना चाहिए कौन किस भाबना और किस नीयत से काम कर रहा है. उसका सफल होना, आंशिक सफल होना अथवा असफल होना इतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है. शायेद ही ऐसा कोई महापुरुष होगा जिसको या जिसके बिचारों को सभी लोग पूरी तरह से समर्थन दे .
ReplyDeleteआपके भावो का मैं आदर करता हू पर समीक्षा को आप निंदा ना समझे | समीक्षा तो हर आन्दोलन की होती हैं हर नेता के गुणों की होती हैं | गाँधी के सारे कार्य बुरे हो ऐसा भी नहीं था पर उस वक्त लोग गाँधी के कार्यों की समीक्षा सुनने को तैयार ही नहीं थे और इसी लिए राष्ट्र को नुक्सान हुआ | जहा इतने लोग जुड़े हो और उम्मीद लगाये बैठे हो एक व्यक्ति से वहा वो नेता ना ही समीक्षा से बच सकता हैं और मूर्खता करने पर निंदा से भी नहीं बच सकता | बाबा का उदेश्य निष्काम भाव का तो कही से भी नहीं प्रतीत होता हैं | आन्दोलन के बीच में हम कुछ नहीं बोले पर बाबा की गलत नीतियो की वजह से हमारे भाई बहेनो को जो लाठी खानी पड़ी वहा निश्चित तौर पर हम सभी को बाबा के नेतृत्व क्षमता पर विचार करने को मजबूर करती हैं | चाहे कोई कितना ही बड़ा क्यों ना हो महान से महान व्यत्की के कार्यों की भी समीक्षा होनी ही चाहिए राष्ट्र हित के लिए | धन्यवाद
ReplyDeleteक्या विदेशी वस्तु के जगह पर स्वदेशी का प्रयोग हमारे देश के लिए फायदेमंद नहीं है?
ReplyDeleteक्या किसी को अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा करने की शिक्षा देना गलत बात है?
व्यायाम से योग की तरफ किसी को मोड़ना गलत बात है?
माना की रामदेव जी से कुछ गलतिय हुई है, परन्तु उस निराकार परमेश्वर के सिवा आप मुझे एक ऐसा व्यक्ति तो बता दीजिये जो पूर्ण हो, जिससे कोई गलती न हुई हो.
माना की रामदेव जी का तरीका गलत हो परन्तु उनके अन्दर हमारी संस्कृति के प्रति और भारत देश के प्रति जो भावना है वह गलत नहीं.
आर्य वह नहीं जो तोड़ते है आर्य तो वह हे जो सबको जोड़ते है,
गर्व से कहो हम आर्य है
गर्व से कहो हम भारतीय है
@Bhadresh Arya
ReplyDeleteगुणवत्ता सबसे प्रधान हैं दुनिया बदल रही हैं और खुद बाबा की फैक्टरी में विदेशी मशीने हैं | बोले वो जो पहले खुद करे |
उनकी गलती की वजह से हिंदू मरे हैं बाबा अभी भी ए सी में रहते हैं |
बाबा तो शिव लिंग पूजा भी करते हैं और खुद को आर्य कहलाते हैं |
ढोंगियो के चक्कर में ही बेडा गर्क हुआ हैं |
बाबा जोड़ रहे हैं अपने फायदे के लिए |
अक्लमंद दुश्मन भला बेवकूफ दोस्त से |