ज्यादातर हिन्दुओ के लिए विवेकानंद बहुत बड़े आदर्श है | उन्होंने इसवी संवत १८९३ में चिकागो में विश्व धर्मं सम्मेल्लन में हिन्दू धर्मं का प्रतिनिधित्व किया |
पर उनके निजी विचार जान कर उनके रहन-सहन खान पान को जान कर मुझे कही भी नहीं लगा ये संत है या हिन्दू है |
बल्कि इनके अनुयायी रामकृष्ण वालो ने तो स्वंम को हिन्दू ना कहेलाए जाने के लिए कोर्ट में आवेदन भी किया था, पर आश्चर्य तो इस बात का है की हिन्दू उन्हें सर आँखों पर चड़ा कर रखते है बिना जाने के किस कारण से वो इसके अधिकारी है |
मै रामकृष्ण जो की विवेकानंद के गुरु थे और विवेकानंद के बारे में रामकृष्ण की ही पुस्तकों से प्रमाण दे कर उनके विचारो को आपके सामने रखने जा रहा हु |
बहुत से लोग जो भावनात्मक रूप से जुड़े है उनको दुःख होगा पर मेरा निवेदन है की बजाय मुझे बुरा भला कहेने के उन किताबो के पन्ने पलटिये जिनके मै प्रमाण दे रहा हु | रामकृष्ण या विवेकानंदा साहित्य मैंने तो नहीं लिखा मै सिर्फ उन्ही बात को आप तक पंहुचा रहा हु |
आइये जानते है विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण के विचारो के बारे में ........................
१. राष्ट्र के स्वतंत्रता आन्दोलन व सामाजिक सुधारो पर उनके विचार
देश के स्वाधीनता संग्राम में उनका कोई योगदान नहीं है देखिये
"The policy of Ramkrishna mission has always been faithful to (its founder) swami Vivekanand's intention. In the early twenties when India's struggle with England had become intense and bitter, the mission has has harshly criticised for refusing to allow its members to take part in the freedom struggle."
- Teachings of Swami Vivekanand, P.38
उनके जीवनीकार उलट ही लिखते है -
"Ramkrishna & Vivekanand were the first awakeners of India's National Consciousness. They were India's first nationalist leaders in the true sense of the term. The Movement for India's liberation started from Dakshineswar."
-Bio. 231
पर इस बात का खंडन इसी पुस्तक में अंगे स्वं विवेकानंद के शब्दों में देखिये
"Let no political significance ever be attached falsely to my writings. What nonsense! " He said as early as September 1894. A year later he wrote : " I do not believe in Politics. God and truth are the only politics in the world. All else is trash." -बिओ. 232
अब जब स्वयं स्वामी विवेकानंद ही ये लिख रहे है के उनका राजनीती में कोई रुझान नहीं तो वे स्वंतंत्रता आन्दोलन के अग्रदूत कैसे हो सकते है ?
२. रामकृष्ण ने स्वयं को राम और कृष्ण का अवतार घोषित किया
Complete works of Swami Vivekananda (Vol. I, P.66-67)
"Two days before the death of Ramkrishna, Narendra (Vivekanand) was studying by the bedside of the master when a stangre thought flashed into his mind. Was the master (R.K) truly an incarnation of God? He said to himself that he would accept shri R.K.'s divinity if the Master declared himself to be an incarnation. He stood looking intendedly at the master's face. Slowly Shri R.K.'s lips parted and he said in a clear voice - " O my Narendra ! Ae you still not convinced? He who in the past was born as Ram and Krishna is now in his body as R.K.". This R.K. put himself into the category of Ram and Krishna who are recognised by the Hindus as Avtars or incarnations of God."
पौराणिक मान्यता को माने तो भी दसवे अवतार कल्कि है तो अब या तो राम कृष्ण को ही कल्कि मानते होंगे | मुझे तो ये बात कही से हजम नहीं हुई |
३. विवेकानंद के मूर्ति पूजा के सम्बन्ध में विचार
"God is eternal, without any form, omnipresent. To think of him as possessing any form, blasphemy/".
-VII, 411
अब ये मुझे याद दिलाता है हमारे कट्टरपंथी मुस्लिम भाइयो की, ईश्वर निराकार है ये तो समझ में आता है पर एश्निन्दा इस प्रकार है ये तो muslim
कट्टरपन्थियो वाली बात हुई |
वैदिकयुग में प्रतिमापुजन का अस्तित्व नहीं था | उस समाया लोगो की येहे धरना थी की ईश्वर सर्वत्र विराजमान है, किन्तु बुध के प्रचार के कारन हम जगत श्रस्ता तथा अपने सखा स्वरुप ईश्वर को खो बैठे और उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप मूर्तिपूजा की उत्पत्ति हुयी | लोगो ने बुद्ध की मूर्ति बनाकर उसे पूजना आरंभ किया | (देववाणी ७५)
"पहले बौध चैत्य, फिर बौध स्तूप और उससे बुद्ध देव का मंदिर बना | इन बौध मंदिरों से हिन्दू मंदिरों की उत्पत्ति हुई | -विवेकानंद से वार्तालाप ११०
"External worship, material worship", say the scriptures, "is the lowest stage to rise high." -I, 16
और सुनिए क्या कहते है
"Idolatory is the attempt of undeveloped minds to grasp spiritual truths." -Teachings of Swami Vivekananda, P.142
इतने कड़े शब्दों में तो सिर्फ आचार्य चाणक्य ने ही मूर्तिपूजा की निंदा की है "..... उन्होंने कहा है मुर्ख मूर्ति पूजा करते है " पर जब उन्होंने कहा था उस वक़्त मूर्ति पूजा की शुरुआत थी | पर विवेकानंद के समय तक तो बहुत हिन्दू थे जो मूर्ति पूजा करते थे बल्कि हिन्दू धर्मं में मूर्ति पूजा अभिन अंग की तरह ले लिया गया था बिना वेदों का अध्यन किये | और स्वंम विवेकानंद के गुरु मूर्ति पूजक थे उनका क्या करे |
इतना पढने के बाद विवेकानंद के विपरीत विचार देखिये
"यदि मूर्तिपूजा में नाना प्रकार के कुत्सित विचार भी प्रविष्ट तो भी मई उसकी निंदा नहीं करूँगा" -(विवेकानंद चरित, पृष्ठ १४६ )
अरे भाई इतना कहे चुके है क्या वह निंदा नहीं | क्या कहू इनको ......
और विरोधाभाष देखिये
"When miss noble came to India in January 1898 to work for education of India, he gave her the name of Sister Nivedita. At first he taught her to worship Shiva and then made the whole ceremony eliminate in an offering the feet of Buddha." -Vivekanand A Biography by Swami Nikhilanand, P.260
अब बताइए कहा है इनका विवेक | क्या है इनकी मान्यता कौन समझेगा
४. विवेकानंदा का हिन्दू धर्मं से अरुचि और रामकृष्ण का इस्लाम पंथ से प्रभावित होके मुस्लिम होने को हां करना
कलि जी पर बलि देना तो सबको पता है पर स्वयं विवेकानंद कितना समर्थन करते थे इन बलि के नाम पर होने वाली हत्यायो का देखिये |
"One day in the Kali temple of calcutta a western lady shuddered at the sight of blood of Goats, sacrificed before the mighty, and exclaimed - 'why is there so much blood before the Godess?' Quickly the Swami (Vivekanand) replied - why not a little blood to complete the picture?" -Vivekanand A Biography by Swami Nikhilanand, P.261
bade bade samaj sudharko ne devi devtao ko to bali se dur rakha hai bhale hi ve swamm mans bakshan karte ho par vivekanand apvaad the
स्वामी विवेकानंद की फ्रेंच भाषा में प्रकाशित जीवनी के लेखक रोम्य रोल्ला के अनुसार रामकृष्ण एक मुस्लमान से प्रभावित होकर अपना धर्मंपरिवर्तन करने और गोमांस खाने के लिए तैयार हो गए थे | इस प्रसंग में माक्स मुलर ने लिखा है - " For long days he (Ramkrishna) subjected himself to various kinds of discipline to realise the Mohammadon idea of all powerful Allah. He let his beard grow, he fed himself on Muslim diet, he completely repeated the Quran." A Real Mahatman P.३५
कहे सकते है की इसी कारन स्वामी विवेकानंद इस्लाम का गीत गाते रहे है उसका प्रमाण हम आगे देंगे
५. रामकृष्ण मिशन का हिन्दू ना होने के पक्ष में तर्क देना
रामकृष्ण मिशन ने अपने हिन्दू न होने के पक्ष में कल्कुत्ता उच्च न्यायालय में जो तर्क दिए थे उनका अंश अहमदाबाद से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र "टाइमस ऑफ़ इंडिया" के २३ जनवरी १८८६ के अंक से यहाँ उध्रत किया जा रहा है -
" During his practice of Islam he repeated the name of Allah and said Namaz thrice daily. During this while he dressed and ate like Muslim. Another biographical work 'Ramkrishna Panth' by Akshoy Sen, provides some more details. A muslim cook was brought who instructed the Brahman cook how to wear lungi and cook like muslim way. We are also told that at this time Ramkrishna felt a great urge to take beef. However, this urge could not be satisfied openly. But one day as he sat on the bank of Ganges, a carcase of cow was floating by. He entered the body of a dog astrally and tasted the flesh of the cow. His muslim sadhana was not completed.
All this is highly comic but it holds an important position in the mission. The lawyers in the mission did not forget to argue in the court that Ramkrishna was on the verge of eating beef. This was meant to prove that he was indifferent hindu and not far from being a devout muslim." The mission won the case.
ऐसे गुरु को विवेकानंद ईश्वर का अवतार मानते थे यानि अवतार जो मुस्लिम हो जाए | आइये आगे पड़ते है
"Though Thousands of Years the lives of the great prophets of yore came down to us, and yet, none stands so high in brilliance as the the life of Ramkrishna Paramhansa." II, ३१२
"भगवन रामकृष्ण ईश्वर का अवतार थे इसमें मुझे तनिक भी संदेहे नहीं है | भगवान श्री कृष्ण का जन्मा हुआ ही था, यह हम निश्चित रूप से नहीं कहे सकते और बुद्ध चैतन्य - जैसे अवतार पुराने है, पर रामकृष्ण सबकी अपेक्षा आधुनिक और पूर्ण है |" (पत्रावली २, ५६)
ये तो कोम्मुनिस्तो वाली बात हुई कृष्ण को ही नकार दिया | जैसे एक सामान बेचने वाला अपने माल को अच्हा और दुसरो के माल को घटिया कहता है वैसे ही कुछ यह स्वामी विवेकानंद करते दिख रहे है |
"उनकी (रामकृष्ण की) पवित्रता प्रेम और ऐश्वर्या का कण मात्र प्रकाश ही राम, कृष्ण, बुद्ध aadi में था | -पत्रावली भाग १ ,१८७
और सुनिए पर हसियेगा मत
"सत्ययुग का आरंभ रामकृष्ण के अवतार की जन्मतिथि से हुआ |" -पत्रावली भाग १,१८८
6. विवेकानंदा और दोहरा चरित्र
अब तक तो स्वयं आप देख चुके होंगे की विवेकानंद का मस्तिष्क या तो अस्थिर था यह वह जान बुझ कर विरोधाभाषी बात करते थे कारण साफ है मौके का फायदा उठाना और आप को कोई बुरा ना कहेगा | सबकी प्रशंशा करो सत्य को हांड़ी पे चड़ा दो | स्वयं 'Teachings of Vivekanand' के संपादक पुस्तक की भूमिका में लिखते है -
"Vivekanand was the last person to worry about formal consistency. He almost always spoke extempore, fired by the circumstances of the moment, addressing himself to the condition of a particular group of hearers, reacting to the intent of a certain question. That was his nature- he was supremly indifferent if his words of today seems to contradict those of yesterday".
ऐसे व्यक्ति को अवसरवादी कहते है | सत्यवादी ऐसा व्यक्ति कैसे हो सकता है क्यों की या तो कल की बात सही होगी या आज की | क्या एक संत को सत्य वादी न होना चाहिए ?
7. विवेकानंद का खान पान
गोमांस खाने का विरोध करने पर हिन्दुओ को कैसा बेहूदा तर्क देते है स्वामी विवेकानंद जरा देखिये
"To the accusation from some Hindus that the Swami was eating forbidden food, he retorted- if the people of India want me to keep strictly to Hindu diet, please tell them to send me a cook and money enough to keep him"
Vivekanand - A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 129
अरे लानत है उन हिन्दुओ पर जो अब भी ऐसे व्यक्ति को आदर्श माने | ये अमेरिकियो के रंग में रंगे नहीं तो और क्या है |
हिन्दुओ का प्रतिबंधित भोजन गोमांस ही होता है इस में किसी को शक नहीं होना चाहिए |
आज के कमुनिस्तो इतिहासकार ब्राहमणों को गोमांस खाने वाला लिखते है कही वो विवेकानंद से ही तो प्रेरित नहीं |
"Orthodox Brahmans regarded with abhorrance the habit of animal food. The swami told them the habit of beef eating by Brahamans in Vedic times".Vivekanand - A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 260
दुःख की बात ये है के वही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वाले विवेकानंद को आदर्श बताते है और कमुनिस्तो का विरोध करते है हिन्दू विरोधी बता के जबकि कमुनिस्तो का प्रेरणा श्रोत तो यही दिख रहे है | ऐसे स्वामी ने शाश्त्रों का कितना अध्यन किया होगा इसका अनुमान तो आप स्वयं ही लगा सकते है |
"He advocated animal food for the Hindus, if they were to cope at all with the rest of the world and find a place among the great nation".Vivekanand - A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 96
वहा जी वहा दुनिया का मुकाबला करना है तो मांस खाने लग जाये हमारे चक्रवर्ती राजाओ ने दसियों बार विश्व विजय शाकाहारी सेनाओ के साथ की और इनका जन्म हुआ है हमे मांसाहार सिखाने के लिए |
आज भी शक्ति के मापक के तौर पर शाकाहारी घोड़े की शक्ति को ही प्रधानता दी जाती है और " Horse Power" कहा जाता है ना की "Lion Power" .
एक भक्त ने स्वामीजी से पुचा - "मांस तथा मचली खाना क्या उचित और आवश्यक है ?" स्वामी जी ने उतर दिया " खूब खाओ भाई, इससे जो पाप होगा , वहा मेरा होगा .....वैदिक तथा मनु के धर्मं में मचली और मांस खाने का विधान है |..... घास-पात खाकर पेट -रोग से पीड़ित बाबा जी के दल से देश भर गया है.... अतः अब देश के लोगो को मचली , मांस खिला कर उधाम्शील बनाना होगा |" - विवेकानंद के संग में, 267-70
इतने घटिया विचार तो वही व्यक्ति रख सकता है जिसने न वेद का और ना मनुस्मृति का अध्यन किया हो|
८. विवेकानंद के इस्लाम पर विचार
इनका फिर वही दोहरा रवैया | दो मुहि बाते देखिये
"The vast majority of perverts to Islam and Christanity are perverts by the swords or descendents of those." - Teachings of Swami Vivekanand Pg 13
"The Mohammadon religion allows Mohammdons to kill all those who are not of their religion. It is clearly stated in Koran- 'Kill the infidels if they do not accept Islam. They must be put to fire and sword" -Teachings of Swami Vivekanand Pg 180
"The Mohammadon came upon the people of India always killing and slaughtering. Slaughtering and killing they over ran them". Teachings of Swami Vivekanand Pg 151
देखिये उनकी विरोधाभास बाते
"It is the followers of Islam and Islam alone who look upon and behave towards all mankind as their own soul"-
A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 254
"Without the help of Islam and the theories of Vedant however fine and wonderful they may be, are entirely valueless."
-A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 255
The spirit of democracy and equality in Islam appealed to Narendra's (Vivekanand's mind and he wanted to create a new India with Vedantic brain and Islamic body."
A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 79
स्वामी विवेकानन्द इस्लाम के बड़े प्रशंसक और इसके भाईचारा के सिद्धांत से अभिभूत थे। वेदान्ती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर को वह भारत की मुक्ति का मार्ग मानते थे। अल्मोड़ा से दिनांक 10 जून 1898 को अपने एक मित्र नैनीताल के मुहम्मद सरफ़राज़ हुसैन को भेजे पत्र में उन्होंने लिखा कि
‘‘अपने अनुभव से हमने यह जाना है कि व्यावहारिक दैनिक जीवन के स्तर पर यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने समानता के सिद्धांत को प्रशंसनीय मात्र में अपनाया है तो वह केवल इस्लाम है। इस्लाम समस्त मनुष्य जाति को एक समान देखता और बर्ताव करता है। यही अद्वैत है। इसलिए हमारा यह विश्वास है कि व्यावहारिक इस्लाम की सहायता के बिना, अद्वैत का सिद्धांत चाहे वह कितना ही उत्तम और चमत्कारी हो विशाल मानव-समाज के लए बिल्कुल अर्थहीन है।’’विवेकानन्द साहित्य, जिल्द 5, पेज 415
स्वामी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि
‘‘भारत में इस्लाम की ओर धर्म परिवर्तन तलवार (बल प्रयोग) या धोखाधड़ी या भौतिक साधन देकर नहीं हुआ था।’’विवेकानन्द साहित्य, जिल्द 8, पेज 330
"मुस्लमान सार्वजानिक भ्रत्भव का शोर मचाते है, kintu vastvik bhraat भाव se kitne dur है | जो मुस्लमान नहीं है वो उनके भ्रत्संघ में शामिल नहीं हो सकते है | उनके गले कटे जाने की ही अधिक सम्भावना है | -धर्मराहस्य, प्रष्ट 43
"For our own motherland a junction of two great religious systems- Hinduism and Islam - is the only hope."
A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 218
also on
-Teachings of Swami Vivekanand Pg 255
निर्णय आपके हाथ में है
पर उनके निजी विचार जान कर उनके रहन-सहन खान पान को जान कर मुझे कही भी नहीं लगा ये संत है या हिन्दू है |
बल्कि इनके अनुयायी रामकृष्ण वालो ने तो स्वंम को हिन्दू ना कहेलाए जाने के लिए कोर्ट में आवेदन भी किया था, पर आश्चर्य तो इस बात का है की हिन्दू उन्हें सर आँखों पर चड़ा कर रखते है बिना जाने के किस कारण से वो इसके अधिकारी है |
मै रामकृष्ण जो की विवेकानंद के गुरु थे और विवेकानंद के बारे में रामकृष्ण की ही पुस्तकों से प्रमाण दे कर उनके विचारो को आपके सामने रखने जा रहा हु |
बहुत से लोग जो भावनात्मक रूप से जुड़े है उनको दुःख होगा पर मेरा निवेदन है की बजाय मुझे बुरा भला कहेने के उन किताबो के पन्ने पलटिये जिनके मै प्रमाण दे रहा हु | रामकृष्ण या विवेकानंदा साहित्य मैंने तो नहीं लिखा मै सिर्फ उन्ही बात को आप तक पंहुचा रहा हु |
आइये जानते है विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण के विचारो के बारे में ........................
१. राष्ट्र के स्वतंत्रता आन्दोलन व सामाजिक सुधारो पर उनके विचार
देश के स्वाधीनता संग्राम में उनका कोई योगदान नहीं है देखिये
"The policy of Ramkrishna mission has always been faithful to (its founder) swami Vivekanand's intention. In the early twenties when India's struggle with England had become intense and bitter, the mission has has harshly criticised for refusing to allow its members to take part in the freedom struggle."
- Teachings of Swami Vivekanand, P.38
उनके जीवनीकार उलट ही लिखते है -
"Ramkrishna & Vivekanand were the first awakeners of India's National Consciousness. They were India's first nationalist leaders in the true sense of the term. The Movement for India's liberation started from Dakshineswar."
-Bio. 231
पर इस बात का खंडन इसी पुस्तक में अंगे स्वं विवेकानंद के शब्दों में देखिये
"Let no political significance ever be attached falsely to my writings. What nonsense! " He said as early as September 1894. A year later he wrote : " I do not believe in Politics. God and truth are the only politics in the world. All else is trash." -बिओ. 232
अब जब स्वयं स्वामी विवेकानंद ही ये लिख रहे है के उनका राजनीती में कोई रुझान नहीं तो वे स्वंतंत्रता आन्दोलन के अग्रदूत कैसे हो सकते है ?
२. रामकृष्ण ने स्वयं को राम और कृष्ण का अवतार घोषित किया
Complete works of Swami Vivekananda (Vol. I, P.66-67)
"Two days before the death of Ramkrishna, Narendra (Vivekanand) was studying by the bedside of the master when a stangre thought flashed into his mind. Was the master (R.K) truly an incarnation of God? He said to himself that he would accept shri R.K.'s divinity if the Master declared himself to be an incarnation. He stood looking intendedly at the master's face. Slowly Shri R.K.'s lips parted and he said in a clear voice - " O my Narendra ! Ae you still not convinced? He who in the past was born as Ram and Krishna is now in his body as R.K.". This R.K. put himself into the category of Ram and Krishna who are recognised by the Hindus as Avtars or incarnations of God."
पौराणिक मान्यता को माने तो भी दसवे अवतार कल्कि है तो अब या तो राम कृष्ण को ही कल्कि मानते होंगे | मुझे तो ये बात कही से हजम नहीं हुई |
३. विवेकानंद के मूर्ति पूजा के सम्बन्ध में विचार
"God is eternal, without any form, omnipresent. To think of him as possessing any form, blasphemy/".
-VII, 411
अब ये मुझे याद दिलाता है हमारे कट्टरपंथी मुस्लिम भाइयो की, ईश्वर निराकार है ये तो समझ में आता है पर एश्निन्दा इस प्रकार है ये तो muslim
कट्टरपन्थियो वाली बात हुई |
वैदिकयुग में प्रतिमापुजन का अस्तित्व नहीं था | उस समाया लोगो की येहे धरना थी की ईश्वर सर्वत्र विराजमान है, किन्तु बुध के प्रचार के कारन हम जगत श्रस्ता तथा अपने सखा स्वरुप ईश्वर को खो बैठे और उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप मूर्तिपूजा की उत्पत्ति हुयी | लोगो ने बुद्ध की मूर्ति बनाकर उसे पूजना आरंभ किया | (देववाणी ७५)
"पहले बौध चैत्य, फिर बौध स्तूप और उससे बुद्ध देव का मंदिर बना | इन बौध मंदिरों से हिन्दू मंदिरों की उत्पत्ति हुई | -विवेकानंद से वार्तालाप ११०
"External worship, material worship", say the scriptures, "is the lowest stage to rise high." -I, 16
और सुनिए क्या कहते है
"Idolatory is the attempt of undeveloped minds to grasp spiritual truths." -Teachings of Swami Vivekananda, P.142
इतने कड़े शब्दों में तो सिर्फ आचार्य चाणक्य ने ही मूर्तिपूजा की निंदा की है "..... उन्होंने कहा है मुर्ख मूर्ति पूजा करते है " पर जब उन्होंने कहा था उस वक़्त मूर्ति पूजा की शुरुआत थी | पर विवेकानंद के समय तक तो बहुत हिन्दू थे जो मूर्ति पूजा करते थे बल्कि हिन्दू धर्मं में मूर्ति पूजा अभिन अंग की तरह ले लिया गया था बिना वेदों का अध्यन किये | और स्वंम विवेकानंद के गुरु मूर्ति पूजक थे उनका क्या करे |
इतना पढने के बाद विवेकानंद के विपरीत विचार देखिये
"यदि मूर्तिपूजा में नाना प्रकार के कुत्सित विचार भी प्रविष्ट तो भी मई उसकी निंदा नहीं करूँगा" -(विवेकानंद चरित, पृष्ठ १४६ )
अरे भाई इतना कहे चुके है क्या वह निंदा नहीं | क्या कहू इनको ......
और विरोधाभाष देखिये
"When miss noble came to India in January 1898 to work for education of India, he gave her the name of Sister Nivedita. At first he taught her to worship Shiva and then made the whole ceremony eliminate in an offering the feet of Buddha." -Vivekanand A Biography by Swami Nikhilanand, P.260
अब बताइए कहा है इनका विवेक | क्या है इनकी मान्यता कौन समझेगा
४. विवेकानंदा का हिन्दू धर्मं से अरुचि और रामकृष्ण का इस्लाम पंथ से प्रभावित होके मुस्लिम होने को हां करना
कलि जी पर बलि देना तो सबको पता है पर स्वयं विवेकानंद कितना समर्थन करते थे इन बलि के नाम पर होने वाली हत्यायो का देखिये |
"One day in the Kali temple of calcutta a western lady shuddered at the sight of blood of Goats, sacrificed before the mighty, and exclaimed - 'why is there so much blood before the Godess?' Quickly the Swami (Vivekanand) replied - why not a little blood to complete the picture?" -Vivekanand A Biography by Swami Nikhilanand, P.261
bade bade samaj sudharko ne devi devtao ko to bali se dur rakha hai bhale hi ve swamm mans bakshan karte ho par vivekanand apvaad the
स्वामी विवेकानंद की फ्रेंच भाषा में प्रकाशित जीवनी के लेखक रोम्य रोल्ला के अनुसार रामकृष्ण एक मुस्लमान से प्रभावित होकर अपना धर्मंपरिवर्तन करने और गोमांस खाने के लिए तैयार हो गए थे | इस प्रसंग में माक्स मुलर ने लिखा है - " For long days he (Ramkrishna) subjected himself to various kinds of discipline to realise the Mohammadon idea of all powerful Allah. He let his beard grow, he fed himself on Muslim diet, he completely repeated the Quran." A Real Mahatman P.३५
कहे सकते है की इसी कारन स्वामी विवेकानंद इस्लाम का गीत गाते रहे है उसका प्रमाण हम आगे देंगे
५. रामकृष्ण मिशन का हिन्दू ना होने के पक्ष में तर्क देना
रामकृष्ण मिशन ने अपने हिन्दू न होने के पक्ष में कल्कुत्ता उच्च न्यायालय में जो तर्क दिए थे उनका अंश अहमदाबाद से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र "टाइमस ऑफ़ इंडिया" के २३ जनवरी १८८६ के अंक से यहाँ उध्रत किया जा रहा है -
" During his practice of Islam he repeated the name of Allah and said Namaz thrice daily. During this while he dressed and ate like Muslim. Another biographical work 'Ramkrishna Panth' by Akshoy Sen, provides some more details. A muslim cook was brought who instructed the Brahman cook how to wear lungi and cook like muslim way. We are also told that at this time Ramkrishna felt a great urge to take beef. However, this urge could not be satisfied openly. But one day as he sat on the bank of Ganges, a carcase of cow was floating by. He entered the body of a dog astrally and tasted the flesh of the cow. His muslim sadhana was not completed.
All this is highly comic but it holds an important position in the mission. The lawyers in the mission did not forget to argue in the court that Ramkrishna was on the verge of eating beef. This was meant to prove that he was indifferent hindu and not far from being a devout muslim." The mission won the case.
ऐसे गुरु को विवेकानंद ईश्वर का अवतार मानते थे यानि अवतार जो मुस्लिम हो जाए | आइये आगे पड़ते है
"Though Thousands of Years the lives of the great prophets of yore came down to us, and yet, none stands so high in brilliance as the the life of Ramkrishna Paramhansa." II, ३१२
"भगवन रामकृष्ण ईश्वर का अवतार थे इसमें मुझे तनिक भी संदेहे नहीं है | भगवान श्री कृष्ण का जन्मा हुआ ही था, यह हम निश्चित रूप से नहीं कहे सकते और बुद्ध चैतन्य - जैसे अवतार पुराने है, पर रामकृष्ण सबकी अपेक्षा आधुनिक और पूर्ण है |" (पत्रावली २, ५६)
ये तो कोम्मुनिस्तो वाली बात हुई कृष्ण को ही नकार दिया | जैसे एक सामान बेचने वाला अपने माल को अच्हा और दुसरो के माल को घटिया कहता है वैसे ही कुछ यह स्वामी विवेकानंद करते दिख रहे है |
"उनकी (रामकृष्ण की) पवित्रता प्रेम और ऐश्वर्या का कण मात्र प्रकाश ही राम, कृष्ण, बुद्ध aadi में था | -पत्रावली भाग १ ,१८७
और सुनिए पर हसियेगा मत
"सत्ययुग का आरंभ रामकृष्ण के अवतार की जन्मतिथि से हुआ |" -पत्रावली भाग १,१८८
6. विवेकानंदा और दोहरा चरित्र
अब तक तो स्वयं आप देख चुके होंगे की विवेकानंद का मस्तिष्क या तो अस्थिर था यह वह जान बुझ कर विरोधाभाषी बात करते थे कारण साफ है मौके का फायदा उठाना और आप को कोई बुरा ना कहेगा | सबकी प्रशंशा करो सत्य को हांड़ी पे चड़ा दो | स्वयं 'Teachings of Vivekanand' के संपादक पुस्तक की भूमिका में लिखते है -
"Vivekanand was the last person to worry about formal consistency. He almost always spoke extempore, fired by the circumstances of the moment, addressing himself to the condition of a particular group of hearers, reacting to the intent of a certain question. That was his nature- he was supremly indifferent if his words of today seems to contradict those of yesterday".
ऐसे व्यक्ति को अवसरवादी कहते है | सत्यवादी ऐसा व्यक्ति कैसे हो सकता है क्यों की या तो कल की बात सही होगी या आज की | क्या एक संत को सत्य वादी न होना चाहिए ?
7. विवेकानंद का खान पान
गोमांस खाने का विरोध करने पर हिन्दुओ को कैसा बेहूदा तर्क देते है स्वामी विवेकानंद जरा देखिये
"To the accusation from some Hindus that the Swami was eating forbidden food, he retorted- if the people of India want me to keep strictly to Hindu diet, please tell them to send me a cook and money enough to keep him"
Vivekanand - A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 129
अरे लानत है उन हिन्दुओ पर जो अब भी ऐसे व्यक्ति को आदर्श माने | ये अमेरिकियो के रंग में रंगे नहीं तो और क्या है |
हिन्दुओ का प्रतिबंधित भोजन गोमांस ही होता है इस में किसी को शक नहीं होना चाहिए |
आज के कमुनिस्तो इतिहासकार ब्राहमणों को गोमांस खाने वाला लिखते है कही वो विवेकानंद से ही तो प्रेरित नहीं |
"Orthodox Brahmans regarded with abhorrance the habit of animal food. The swami told them the habit of beef eating by Brahamans in Vedic times".Vivekanand - A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 260
दुःख की बात ये है के वही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वाले विवेकानंद को आदर्श बताते है और कमुनिस्तो का विरोध करते है हिन्दू विरोधी बता के जबकि कमुनिस्तो का प्रेरणा श्रोत तो यही दिख रहे है | ऐसे स्वामी ने शाश्त्रों का कितना अध्यन किया होगा इसका अनुमान तो आप स्वयं ही लगा सकते है |
"He advocated animal food for the Hindus, if they were to cope at all with the rest of the world and find a place among the great nation".Vivekanand - A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 96
वहा जी वहा दुनिया का मुकाबला करना है तो मांस खाने लग जाये हमारे चक्रवर्ती राजाओ ने दसियों बार विश्व विजय शाकाहारी सेनाओ के साथ की और इनका जन्म हुआ है हमे मांसाहार सिखाने के लिए |
आज भी शक्ति के मापक के तौर पर शाकाहारी घोड़े की शक्ति को ही प्रधानता दी जाती है और " Horse Power" कहा जाता है ना की "Lion Power" .
एक भक्त ने स्वामीजी से पुचा - "मांस तथा मचली खाना क्या उचित और आवश्यक है ?" स्वामी जी ने उतर दिया " खूब खाओ भाई, इससे जो पाप होगा , वहा मेरा होगा .....वैदिक तथा मनु के धर्मं में मचली और मांस खाने का विधान है |..... घास-पात खाकर पेट -रोग से पीड़ित बाबा जी के दल से देश भर गया है.... अतः अब देश के लोगो को मचली , मांस खिला कर उधाम्शील बनाना होगा |" - विवेकानंद के संग में, 267-70
इतने घटिया विचार तो वही व्यक्ति रख सकता है जिसने न वेद का और ना मनुस्मृति का अध्यन किया हो|
८. विवेकानंद के इस्लाम पर विचार
इनका फिर वही दोहरा रवैया | दो मुहि बाते देखिये
"The vast majority of perverts to Islam and Christanity are perverts by the swords or descendents of those." - Teachings of Swami Vivekanand Pg 13
"The Mohammadon religion allows Mohammdons to kill all those who are not of their religion. It is clearly stated in Koran- 'Kill the infidels if they do not accept Islam. They must be put to fire and sword" -Teachings of Swami Vivekanand Pg 180
"The Mohammadon came upon the people of India always killing and slaughtering. Slaughtering and killing they over ran them". Teachings of Swami Vivekanand Pg 151
देखिये उनकी विरोधाभास बाते
"It is the followers of Islam and Islam alone who look upon and behave towards all mankind as their own soul"-
A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 254
"Without the help of Islam and the theories of Vedant however fine and wonderful they may be, are entirely valueless."
-A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 255
The spirit of democracy and equality in Islam appealed to Narendra's (Vivekanand's mind and he wanted to create a new India with Vedantic brain and Islamic body."
A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 79
स्वामी विवेकानन्द इस्लाम के बड़े प्रशंसक और इसके भाईचारा के सिद्धांत से अभिभूत थे। वेदान्ती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर को वह भारत की मुक्ति का मार्ग मानते थे। अल्मोड़ा से दिनांक 10 जून 1898 को अपने एक मित्र नैनीताल के मुहम्मद सरफ़राज़ हुसैन को भेजे पत्र में उन्होंने लिखा कि
‘‘अपने अनुभव से हमने यह जाना है कि व्यावहारिक दैनिक जीवन के स्तर पर यदि किसी धर्म के अनुयायियों ने समानता के सिद्धांत को प्रशंसनीय मात्र में अपनाया है तो वह केवल इस्लाम है। इस्लाम समस्त मनुष्य जाति को एक समान देखता और बर्ताव करता है। यही अद्वैत है। इसलिए हमारा यह विश्वास है कि व्यावहारिक इस्लाम की सहायता के बिना, अद्वैत का सिद्धांत चाहे वह कितना ही उत्तम और चमत्कारी हो विशाल मानव-समाज के लए बिल्कुल अर्थहीन है।’’विवेकानन्द साहित्य, जिल्द 5, पेज 415
स्वामी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि
‘‘भारत में इस्लाम की ओर धर्म परिवर्तन तलवार (बल प्रयोग) या धोखाधड़ी या भौतिक साधन देकर नहीं हुआ था।’’विवेकानन्द साहित्य, जिल्द 8, पेज 330
"मुस्लमान सार्वजानिक भ्रत्भव का शोर मचाते है, kintu vastvik bhraat भाव se kitne dur है | जो मुस्लमान नहीं है वो उनके भ्रत्संघ में शामिल नहीं हो सकते है | उनके गले कटे जाने की ही अधिक सम्भावना है | -धर्मराहस्य, प्रष्ट 43
"For our own motherland a junction of two great religious systems- Hinduism and Islam - is the only hope."
A biography by Swami Nikhilanand Saraswati Pg 218
also on
-Teachings of Swami Vivekanand Pg 255
निर्णय आपके हाथ में है
abe kamine jis nikhila-lund ka tark tu de raha hai ? tu koi murkh hai. saale viviekanand ka asli wala diary to tu padha hi nahin hai.
ReplyDeleteek do baaten bich-bich me se dekar tu kuchh bhi sabit nahin kar sakta. padhna hi hai to unka pura jivan sahi dhang se aur unke tejasvi bhasan aur sahitya tumne kabhi padhe ?
ReplyDeleteaur haan swami raamkrishna ji paramhans the.
is page kodelete kar do bhaai, oki matlab nahin hai is page kaa. you can continue i will guide you on new posts.
ReplyDeletevknd was a gt prsnty
ReplyDeleteइस पेज को डिलीट कर दे मुर्ख...................................................................................................................................................................................................
ReplyDeleteMUrkh delete karo, He was Swami Vivekanand u damn fool
Deletetu bhul raha hi ki swami ji ne hi kaha tha...GARV SE KAHO HUM HINDU HI...ye TU kahan se naya utha laya ......swami ji ke bare me.
ReplyDeleteJAI SREE RAM
अरे मूर्खो साफ़ साफ़ लिखा हैं के विवेकनन्द किस प्रकार हर बार अपनी बात से पलट जाता हैं | हिन्दुओ में ना जाने कितने ढ़ोंगी बाबा हैं विवेकानंद कोई अपवाद नहीं | जा कर लेख में दिए गए प्रमाणों को जाचो फिर यहाँ कमेन्ट करो |
ReplyDeletetu bhi usi categary ka suar hai
Deleteतो क्या आप विवेकानंद को भी किसी वर्ग का सूअर कहे रहे ?
Deleteमैंने तो अपनी भाषा मर्यादित एवं प्रमाण युक्त राखी हैं फिर आपको क्यों आपा खो रहे हैं?
क्या आप भी विवेकानंद कि तरह
भगवान राम, कृष्ण को काल्पनिक मानते हैं ?
आप भी माँसाहारी हैं ?
आपके गुरु भी ५वक़्त कि नमाज पढ़ने लगे थे क्या ?
क्या आप को युवा अवस्था में बहुत रोगों ने घेर रखा हैं ?
तो फिर इतना दर्द क्यों पता करिये जो लिखा वो सत्य है या नहीं
leave the gr8 personality....
ReplyDeleteVIVEKANAND was a nice man.....dnt blame him.....
Vivekananda was an opportunist.
Deletehe is giveng a truelly false implication ! kindly refer to complete work of vivekanada ehere he have said abut food. he has compared elefant and lion. and strictly saind to follow vegeterian. your block sucks dude...
ReplyDeletePandey ji
DeletePlease verify my words on RK Mission site as well
http://truthclub.wordpress.com/category/false-gods/vivekananda/
2. http://www.ramakrishnavivekananda.info/reminiscences/057_ksi.htm
The Swami also told me that he had long taken no fish food, as the South Indian Brahmins whose guest he had been throughout his South Indian tour were forbidden both fish and flesh, and would fain avail himself of this opportunity to have his accustomed fare. I at once expressed my loathing for the taking of fish or flesh as food. The Swami said in reply that the ancient Brahmins of India were accustomed to take meal and even beef and were called upon to kill cows and other animals in yajnas or for giving madhuparka to guests. He also held that the introduction and spread of Buddhism led to the gradual discontinuance of flesh as food, though the Hindu shastras (scriptures) had always expressed a theoretical preference for those who avoided the use of flesh-foods, and that the disfavour into which flesh had fallen was one of the chief causes of the gradual decline of the national strength, and the final overthrow of the national independence of the united ancient Hindu races and states of India. He informed me, at the same time, that in recent years Bengalis had, as a community, begun to use freely animal food of several kinds and that they generally got a Brahmin to sprinkle a little water consecrated by the utterance of a few mantras over a whole flock of sheep and then, without any further qualms of religious conscience, proceeded to hand, draw, and quarter them. The Swami’s opinion, at least as expressed in conversation with me, was that the Hindus must freely take to the use of animal food if India was to at all cope with the rest of the world in the present race for power and predominance among the world’s communities, whether within the British empire, or beyond its limits. I, as a Brahmin of strong orthodox leanings, expressed my entire dissent from his views and held that the Vedic religion had alone taught to man his kinship and unity with nature, that man should not yield to the play of sensuous cravings or the narrow passion for political dominance. The ennobling gospel of universal mercy which had been the unique possession of the Hindus, especially of the Brahmins of South India, should never be abandoned as mistaken, out of date, or uncivilized, and that the world can and ought to make a great ethical advance by adopting a humane diet, and also that no petty considerations of national strength or revival should prevail against the adoption of a policy of justice and humanity cowards our dumb brother-jivas of the brute creation. Knowing, as I fully did, the Swami’s views on this question, I was not surprised to learn that, while in America he had been in the habit of taking animal food, and I think he treated with silent contempt the denunciations and calumnies directed against him on this account.
वेद आर्या जी
ReplyDeleteलेख बहुत कुशलता से लिखा गया है,और भाषा की द्रष्टि से अच्छा लगा पढकर |
परन्तु कुछ संदेह है ?
आप ब्लोग्स का नहीं किताबो का पूरा विवरण दे और हो सके तो ,भारतीय लेखकों के अलावा विश्व इतिहास या दर्शन शास्त्र की किताबो का उल्लेख करें और उनके विषय में थोडा और प्रकाश डालें |
Ved Arya ji ..aapne sahi likha hai. mai Vivekanand ke sare lekh ko pada hai. aapko bahut dhanyvad !
ReplyDeleteSome great persons was in earth and some even good thinkers could not understand them.
ReplyDeleteUpasak said right I think
Deletetumhe kuch samajh me nahi aaya :o
Deletegreat kaha se the
chilam lagate the maans khaate the
kaha ke great bewkuf ladke
bahut se nasebaaj bhagwa pehnte the vivekanand apwad nahi
Priya Arya ji,
ReplyDeleteAapne bate to sab sahi likhi hai kewal tark galat diye hai.
1. Swami vivekananda ke vicharon me na to virodhabhas hai aur na hi koi bhram. Kewal bina sandarbh ke idhar udhar se kuchh kuchh bate padhne se aisa lag sakta hai.
2. Swami Vivekananda ka bharatiya swatantrata me yogdan ka thik se adhyayan nahi hua tha. par ab ho rha hai. KAi kitabe aa rahi hai. Swamiji ki baten atyant samajhdari se kahi gayi thi. Angrej unko pakad nahi paye par unhi ki baton se kranti ki jwala bhadaki. IB aur CID ki reports me isaki puri jankari samane aayi hai. Yadi aap delhi m erahte hai to Vivekananda International Foundation me Shri Anirban Ganguli ji se mile wo is par research kar rahe hai.
3. Bali aur mansahar ke bare me swamiji ke vichar purnatah vaigyanik the. Jo samajsudharak angreji shiksha ke prabhav me Hinduon ki sab baton ki alochana karte the unko swamiji ne spasht uttar diya hai. Mai bhi aap se Mansahar va bali ki Hindu dharm me vaigyanik manyata par shastrarth kar skata hun. Yadyapi maine kabhi bhi mansahar nahi kiya hai, anda bhi nahi khaya par mai isko hindu virodhi nahi manta. Shakahar ka natak Jain prabhav me Gandhi baba jaise logone failaya. Hindu yane shakahari ye bada galat vichar hai Ram aur krishn jaise avtar bhi mansahari the.
4. Ramkrishn ke avtar hone ke bare me aapka kalki wla tark Shrimad Bhagvat ke anusar nahi hai. dashavtar to mukhya avtar hai. Wise 24 prakar ke avtar bataye hai Bhagvat me jiske anusar aap aur mai bhi apane divyatv ko pragat kar avtar ban sakte hai.
5. Ramkrishn mission dwara apne aap ko ahindu kahana durbhagyapurn tha. Par wo vakilon ke sujhav par kiya tha jise turant wapis le liya gaya. Bangal me communist sarkar mission ki schoolon me aur colleges me apne principal baitha kar bantadhar kar rahi thi. Secularism ke chalate minority institution par sarkar ka koi controll nahi hota, is liye vakilon ne affidevit diya ki RK mission minority hai. Par jaise bade swamiji ko pata chala wo wapis le liya gaya tha.
Aasha hai maine aapke sare prashnon ke uttar de diye hai. Fir bhi aap yadi kuchh aur puchhana chahe to mai taiyar hun. Ek prashn hai Aap deshbhakt hai, Hinduon ke bare me kuchh karte hai itane sare shatru hai jinase ham ko ladna jaruri hai aise me Swami Vivekananda ke bare me is prakar likhane ka uddyesh samajh me nahi aaya. Ham hindu aise hi apas me ladte rahenge chhoti chhoti baton par aur hamara astitv hi khatam ho jayega. Kya aap apne uddeshya ko batane ka kasht karenge???
Priya Arya ji,
ReplyDeleteAapne bate to sab sahi likhi hai kewal tark galat diye hai.
priya uttarpath ji,
padhne ka aur comment k lie dhanywad, tathyo ko sweekar karne ka bhi dhanyawad.
1. Swami vivekananda ke vicharon me na to virodhabhas hai aur na hi koi bhram. Kewal bina sandarbh ke idhar udhar se kuchh kuchh bate padhne se aisa lag sakta hai.
aap wahi tark de rahe hain jo muslim quran ko defend karne k lie dete hain....veer savarkar ko dekhiye....kahi aisa confusion nahi milega...swami shradhanand..maharishi dayanand sab apni bat par tike rahe hain. akhir vivekanand hi kyo?
2. Swami Vivekananda ka bharatiya swatantrata me yogdan ka thik se adhyayan nahi hua tha. par ab ho rha hai. KAi kitabe aa rahi hai. Swamiji ki baten atyant samajhdari se kahi gayi thi. Angrej unko pakad nahi paye par unhi ki baton se kranti ki jwala bhadaki. IB aur CID ki reports me isaki puri jankari samane aayi hai. Yadi aap delhi m erahte hai to Vivekananda International Foundation me Shri Anirban Ganguli ji se mile wo is par research kar rahe hai.
jaankari k lie dhanywad, par mujhe unka swarajya k lie dahad kahi dikhaai nahi di....sanyasi nirbhik hote hain darte nahi. aur nahi dene ke lie ek bayan nahi aur viprit dene k lie itna spast hain..ye kaisi bat hui.
3. Bali aur mansahar ke bare me swamiji ke vichar purnatah vaigyanik the. Jo samajsudharak angreji shiksha ke prabhav me Hinduon ki sab baton ki alochana karte the unko swamiji ne spasht uttar diya hai. Mai bhi aap se Mansahar va bali ki Hindu dharm me vaigyanik manyata par shastrarth kar skata hun. Yadyapi maine kabhi bhi mansahar nahi kiya hai, anda bhi nahi khaya par mai isko hindu virodhi nahi manta. Shakahar ka natak Jain prabhav me Gandhi baba jaise logone failaya. Hindu yane shakahari ye bada galat vichar hai Ram aur krishn jaise avtar bhi mansahari the.
kya hain hindu? koi bhi jiska naam hindi me ho wo hindu nahi ho jaata...maansahar ko shashtra sammat dikhaiye? kariye shashtrarth main kahi jaa nahi raha...ved ka praman dijie..fir to yahi baat ho gai k gomedh me gaye ashw medh me ghode ki bali...jo angrezo ne failaya. hindu dharma apne shashtro se hain...vedo se 11 upnishado se 6 darshan se gita k gyaan se, ram k charitra se krishna k charitra se.
4. Ramkrishn ke avtar hone ke bare me aapka kalki wla tark Shrimad Bhagvat ke anusar nahi hai. dashavtar to mukhya avtar hai. Wise 24 prakar ke avtar bataye hai Bhagvat me jiske anusar aap aur mai bhi apane divyatv ko pragat kar avtar ban sakte hai.
ReplyDeletejeevatma hi avtaar leti hain, ram krishna 5 time ki namaj padhne lage the ye sabko pata hain...aur apne gurume andh bhakt hona koi badi bat nahi.
5. Ramkrishn mission dwara apne aap ko ahindu kahana durbhagyapurn tha. Par wo vakilon ke sujhav par kiya tha jise turant wapis le liya gaya. Bangal me communist sarkar mission ki schoolon me aur colleges me apne principal baitha kar bantadhar kar rahi thi. Secularism ke chalate minority institution par sarkar ka koi controll nahi hota, is liye vakilon ne affidevit diya ki RK mission minority hai. Par jaise bade swamiji ko pata chala wo wapis le liya gaya tha.
ye to aur bhi dubhagyapurna hain k vakilo ki salah par rkmission mahan hindu dharm se alag hone ki sochne laga aur kuch sujha nahi.....main to kisi paristithi me naa hounga is mahan vaidik sanatan dharma se dur
Aasha hai maine aapke sare prashnon ke uttar de diye hai. Fir bhi aap yadi kuchh aur puchhana chahe to mai taiyar hun. Ek prashn hai Aap deshbhakt hai, Hinduon ke bare me kuchh karte hai itane sare shatru hai jinase ham ko ladna jaruri hai aise me Swami Vivekananda ke bare me is prakar likhane ka uddyesh samajh me nahi aaya. Ham hindu aise hi apas me ladte rahenge chhoti chhoti baton par aur hamara astitv hi khatam ho jayega. Kya aap apne uddeshya ko batane ka kasht karenge???
jarur mere bhai, aaj maine likha hain yahi baat koi vidharmi likhega to bada kasht hoga...aapne to sweekar kia log to sweekar bhi nahi karte. hamare lie satya sabse bada hain use hame chupana nahi hain jo chiz jaisi hain use vaise hi lena hain....chilam lagane wale ko smoker mans kahne wale ko mansahari hi kehte hain.
hindu dharma me ye sab nahi hain...kaash mere dwara die gaye vivran galat hote to hamare pas ek mahan sanyasi hota adarsh hetu
baki aapka blog dekha accha kaam kar rahe hain
subhkamnaye
1.<<<.veer savarkar ko dekhiye....kahi aisa confusion nahi milega...swami shradhanand..maharishi dayanand sab apni bat par tike rahe hain. akhir vivekanand hi kyo?>>> Mai aapke trap me nahi fansane wala. In sabke jivan me bhi kai virodhabhas hai yadi aap jeise kewal upari taur par dekha jaye. Par mai in sab mahan logon ke prati shraddha rakhata hun isliye koi udaharan nahi dunga. Aisa karna murkhata hi hogi. Swami Vivekananda ke bare me aapki bhrantiyan bhi upari baton ko padhane ke karan hai. Swamiji ekmatr vyakti the jinhone hinduon ko sangathit kiya. LAhore se unke pass sanatani aur aryasamaji aur Sikh tino aaye alag alag Swagat samaroh ke liye, Swamiji ne kaha yadi aap apas me ladte rahe to fir mai nahi aaunga yadi tino milkar ek manch par mera swagat kareng eto aaunga. tino ko manan pada aur Swamiji ne lahore me tin bhashan diye jisame ek dusare ke kattar virodhi ek manch par aaye. Pahale din ka vishay tha- "Hindu Dharm ke samanya ahdar". krupaya padhe shayad aapko anek prashnon ke uttar mil jayenge.
ReplyDelete2.Chahe murtipuja ho ya mansahar ya pashubali is bare me kattarta se virodh purnatah ahindu vichar hai. Hinduon ne aisi bahri baton me kabhi bhi ek hi mat ka agrah nahi kiya. aisa agrah to bible ke prabhav ka asar hai. Hindu to sab star ke vyakti ko upar uthane ka avsar deta hai. Har karya ko ishavar ko arpit karne ka pravdhan hai. Isi ke karan ham itne varshon baad bhi tike hai. Jo kattar ho jate hai ki ek hi marg satya hai wo tut jate hai. Vishv me anek mahan sanskrutiyan isi karan dhwast ho gayi. Aaj yadi arya samaj ki sthiti itani durbal hai to uska bhi karan yahi hai ki kattarta ne kabhi bhi jyada din prasar nahi kiya hai. Sabko samman den ahi marg hai. Shastro ke to kai vachan ginaye ja sakte hai par mujhe lagta hai kewal shastra vachan nahi uske vigyan par bhi charcha honi chahiye.
3. Ramakrishan dwara 5 baar namaj padhane ke bare me jo prachar hua hai wo purnatah asatya hai. Ulate ek sufi ke sath islam ko samajhane ke liye sadhna karte samay ke anubhavon ke bare me atyant katu baten Shri Ramkrishan ane baad me shishyon ko kahi thi. Unke anusar yah mat jyada din nahi rahega. Unhone spasht bataya tha ki Hindu hi ekmatr santan dharm hai.
Aapme tark ki adbhut shalti hai. vivekananda jaise Vishv me Hindu dharm ko manyata dene wale mahpurush par usako vyarth gavane ke sthan par Desh aur dharm ke shtruon par use lagaye.
Aryasamaj ki ye sabase badi samasya hai. Wo apanon se hi jyada ladta hai. Isi se aaj uske anuyayi nahi ke barabar rah gaye hai.
1. mere bhai fasna fasana kaisa...aap hamare bhai hain dharm ka karya kar rahe hain. mujhe jo mila wo galat laga....sanyasi aise nahi hote islie appati kari. haal me hi vivekanand ji ki aur pustake mili...ek me wo kehte hain kuch kaam nahi aata naa naam na yash sirf prem kaam ata hain....jisne bhartiya shashtra nahi padhe uske lie to lagega ki bade ache shabd hain
Deleteab dekhiye kitna doshpurn vaktavya hain...acharya chanakya ne ek sloka me kaha hain ke murkha apne ghar me,dhanwan apne kshetra me raaja apne rajya me par vidwan har jagah pujya hain...pujya ka matlab yaha sabse karyayukt hathiyar hain gyaan. islie unke vaktavyo par chintan kariye. logo ko ek hona hi chahiye par iska arth ye nahi k unhe sidhant charcha nahi karni chaiye....dusri baat jo swam hamse alag hona chahte hain unhe ham jabardasti apne me nahi mila sakte. hindu wo hain jo khud ko garv se hindu(arya) kehlana chahe.
agar mahapurusho me dosh hain to vo bhi hame sweekar karne chahiye dosh rup me...taki wo prasarit naa ho kisi k bahane se.chahe rishi dayanand ho ya veer savarkar
2."Chahe murtipuja ho ya mansahar ya pashubali is bare me kattarta se virodh purnatah ahindu vichar hai."
is baat se main aapse purntaha asahmat hu....kya hain hindu? sable kalyan ka maarg hain hindutva...maansahar aur pashubali purntah hindu shaashtro k virudh hain. murtipuja hinduo ko swam nuksaan deti hain islie mansahar aur pashubali ki shreni me murtipuja nahi. hindu dharma ka mool ved hain....aur ved teeno chizo ko nisidh batate hain.
hindu dharma aage kalyan maarg par badhte rehana satya par charhca karte rehne ka naam hain ved yahi kehte hain....manu maharaj ne yahi samjhaya k buddhi sangat lo....iske vipreet agar arya samaji jaate hain to main unka b virodh karta hu. aapki aur meri vaichari swatantra saman hain...hame swasth charcha karni chahiye taaki satya tak pahuche bina kisi dwesh bhaav ke.
3. is lekh me likhi baate koi bhi galat sabit kare to mujhe jyada khushi hogi....akhir hame ek bade naam ka sanyasi milega....par vivekanand ji ka maansahar,chilam lagana,virodhabhashi bayan dena, shashtra virudh bolna...ye sab bahut jagah milega...aur agar unhe log aadarsh mante hai to log unke durguno ko bhi lenge yaa in durguno ko rakhne waale unhe upar utha k galat kaam karenge. k dekhiye vo b to karte the..is se dharma ka haas hoga...rishi muniyo ka apmaan hoga.....
kisi ka virodh karna mera uddeshya nahi...har rashtra bhakta sanyaasi mere lie param aadarniya hain...par agar uski sisksha se kahi dharma ko nuksaan hain to satya ko laana hamara aur aapka dono ka kartavya hain.
parmatma vishwa ka kalyan kare
rashta prahari ji jald hi aapke lekh ka uttar milega, parantu aap duragrah se prerit lagte hai to Dayanad ji ke bare me prashni ke uttar dene ko bhi taiyar rahe.
Deleteविवेक वाणी जी,
Deleteबिना लेख को गलत सिद्ध करे आप दुराग्रह का आरोप कैसे लगा सकते है ? इसलिए क्यों के दुराग्रह का भाव आपमें दिख रहा है | क्यों के विवेकानंद की असलियत सबके सामने आरही इसलिए दयानंद बुरे हों गए ? और हम तों अंग्रेजो के समय से उत्तर दे रहे है आप पहले उत्तर तों लिखे | जब इसका हों जाए तों इसका भी उत्तर देने का कष्ट करे |
http://answeringyou.blogspot.in/2014/02/anti-hindu-is-presented-as-hindu-icon.html
धन्यवाद
मेरा प्रिय मित्र किर्पया इस लेख को डिलीट कर दो, क्यूंकि यह बिलकुल भी सही नहीं है ! हमारे इतिहास को हमेशा से विकृत किया गया है ! जो देश १२००-१५०० वर्षों से गुलाम रहा हो उसका इतिहास कितना सच हो सकता है ! उद्धरण स्वरुप हमारी मनु स्मृति और बाल्मिक रामायण को भी विकृत किया गया है ! यदि आप जैसे हिंदूवादी लोग ही इस तरह के कार्य करेंगे तो कैसे काम चलेगा ! अत: आप से अनुरोध है की विभ्रम न फैलाइए और इस लेख को तुरंत दी डिलीट कर दीजिये !
ReplyDeleteधन्यबाद !
प्रिय बंधू,
Deleteसादर नमस्ते,
किसी भी महान पुरुष पर गलत आछेप करने का मेरा कभी भी अभीप्राय नहीं हैं | आने वाले समय में हिन्दुओ पर होने वाले हमले हमले के लिए उन्हें तैयार करना हमारा प्रथम ध्ये हैं | मैंने आर के मिसन की साईट पर भी तथ्यों को जाचा हैं | और इस वक्त वहा के आश्रम से भी संपर्क किया हैं | उपरोक्त तथ्य सही हैं भारत में प्रचलित साधुओ की तरह विवेकानंद भी थे शाश्त्रो की मर्यादा का पालन नहीं किया गया था फिर भी अगर आर के मिशन वाले भी सेकुलरिस्म का प्रचार छोड कर ईसाईकरण और इस्लामीकरण के विरुद्ध साथ देते हैं तो मैं भी उनके सहयोग हेतु इस लेख को हटा दूँगा | बस उनके अनुयायियो को मांसाहार का समर्थन करने के बजाय सीधे से मांसाहार की निंदा करना होगा | इन विषयों पर विभिन्न विद्वानों से चर्चा चालु हैं मुझे थोड़ी भी उम्मीद दिखी की अगर मैं विवेकानंद जी को विशुद्ध सन्यासी दिखा सका तो मैं तुरंत ही इस लेख को हटा दूँगा | संभव हुआ तो समर्थन में लेख भी दूँगा | आपके हिंदुत्व की रक्षा के कार्यों के लिए बहुत बहुत आभार |
http://jhindu.blogspot.in/2012/01/blog-post_30.html
ReplyDeletemahoday ,, ye me jaanta hu ki aarya samaj , or ramkrishna misan hamesa aaps me bhide rahte he ... ye barchswa ka yuddh aap jese bhadrajano ko shobha nhi deta ,, sampoorna wiswa jaanta he ki bo atyant mahaan wyakti the aap unke baare usi tarah bol rhe he jese muhammad ne kuraan me likha ho.... apni chhabi ka dhyaan rakhe or baalako ki bhanti kratya na kare .. mene swamiji ke baare me adhyayan ba shodh kiya he ,,, or jaha tak baat he maas bhakshan ki to pramaan amaare puraan me he ,,, sirf brahamman ko chhodkar maas bhakshan sabko apni marzi se chhoda gaya he oor me brahamman hu maas nhi khata par anya ke liye ise galat bhi nhi maanta .......
ReplyDeletePriya bhai Shantanu,
DeleteKya parmatma ne brahmin ki paachan prakriya anya logo se bhinn banai hain jo unke lie nisiddh aur anya logo ke swatantrata hain. Ek adarsh samaj me dohre maap dand nahi hote galat chij sabke lie galat hoti hain. Aur varchash arya samaj ya RK mission ki koi baat hi nahi hain bhai.
Vivekanand ne gau raksha, desh ki swantantrata ya ved raksha ke lie kuch kia ho to dikhaaye use bhi rakhenge..par aisa kuch milta nahi viprit avashya milta hain. Jo chij jaisi hain use waisa hi lena satya kehlaata hain.
Kuch raksh sanskriti k logo ne hamare aarsh grantho me milawaat ki hain par usme sudhaar bhi kia gaya hain. Aap rishi krat grantho ka adhyan kare maansahaar sarvart nisidh hain. Yakeen maniye hame kisi se koi dwesh nahi bas galat aadarsh hindu samaj me sthapit naa ho aisa prayas hain warna kal ko log yahi kahenge jo aap kehe rahe hain k hamare dharma me maansahaar ki swatantrata hain.
aapka yah lekh bda srahniya hai ,,,,or bda acha paryas kiya hai aapne hindu jagriti ka ,,,,,aap aage bhi aise lekh likhte rahiye ,,,,,,taki hinduo ke man se kuch bhrantiya kam ho jaaye .....nmastey ji
ReplyDeleteइसे ज्ञात होना चाहिए कि ये वो विवेकानंद हैं जिन्होंने कन्याकुमारी से लेकर काश्मीर तक भारत के हर सनातनी के ह्रदय पर राज किया | ये कोई दयानंद थोड़े ही न हैं जिन्हें सिर्फ मुट्ठी भर आर्य समाजियों ने फालो किया | क्या कोई आर्यसमाजी बताएगा कि दयानंद ने इस देश को नया क्या दिया ?? वेद पहले से ही थे , दयानंद से पूर्व बहुतो ने वेद का भाष्य किया फिर दिया क्या भारत को ? दिया , एक नारा दिया , वेदों कि ओर लौटो | जो वस्तुतः ये था कि हमारे बताये हुवे मार्गो पे चलो , और दयानंद ने अपनी बात को सही और सिद्ध करने के लिए वेद का सहारा लिए | क्योकि वो जानते थे कि अगर मैं हर बात में वेद को अपनी ढाल बनाऊंगा तो ये सनातनी वेद का विरोध नहीं कर पायेंगे | क्योकि उन्होंने बुद्ध और जीन कि गति देखि थी | आत्मज्ञानी और बह्मज्ञानी होने के वावजूद भी भारत ने इन दोनों को वेद निंदक करार करके इनके दर्शनों को नास्तिक दर्शन कि संज्ञा दे दी | दयानंद शुरू से ही अपना एक मत चलाना चाहते थे , जिसकी पूर्णाहुति उन्होंने आर्य समाज कि स्थापना करके कि | जिसके बारे में श्री रामकृष्ण परमहंस ने कहा था जब दयानंद कोलकाता गए थे उस वक़्त , उन्होंने कहा था "दिन-रात चौबीस घंटे शास्त्र चर्चा कर रहा है ,व्याकरण का प्रयोग कर बहुत सी बातों का (शास्त्र वाक्यों का )..विपरीत अर्थ करने लगा हैं ..स्वयं कुछ करना चाहता है ...अपना कोई मत चलाना चाहता है ..इस प्रकार का अहंकार उसके अंदर विद्यमान है" | इतनी बड़ी बात उन्होंने उसी वक़्त कह दी थी जब अभी दयानंद ने आर्यसमाज बनाके अभी अपना मत नहीं चलाया था |
ReplyDeleteइस मूर्ख को इतना भी समझ में नहीं आता हैं अगर विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस को समझना हैं , तो पहले दयानंद रूपी कुए से बाहर आओ | क्योकि जहा दयानंद को समझने के लिए सिर्फ व्याकरण कि जरुरत हैं वही विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस को समझने के लिए बुद्धि के साथ साथ ह्रदय कि भी जरुरत हैं |
नमस्ते पीयूष जी,
ReplyDeleteआपका वक्तव्य स्वमेव विरोधाभाषी हैं | एक तरफ कहते नया क्या दिया वेद भाष्य तो पूर्व से थे दूसरी तरफ कहते अपना मत चलाना चाहते थे | सायन महीधर उव्वट के भाष्यो से हि वैदिक धर्मं बदनाम हुआ हैं आज भी मुसलमान/इसाईं उन्ही का वेद भाष्य प्रयोग करते दयानंद के वैज्ञानिक भाष्य में त्रुटि निकालने का साहस ना कर सके | आर्य समाज ने टूटे हुए हिंदू समाज को एक किया हर वर्ग से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य बनाये | कितने क्रन्तिकारी दिए श्याम जी कृष्ण वर्मा, लाला लाजपत राय, रास बिहारी बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, भाई परमानन्द, स्वामी श्रद्धानंद, श्यामा प्रसाद मुख़र्जी | हिंदू धर्मं का रक्षक हैं आर्य समाज | अब बात करे राम कृष्ण और विवेकानंद कि तो व्यक्ति खुद इस्लाम में परिवर्तित हो गया हो वो शंकराचार्य का अद्वैत का मूल भी नही समझता | और विवेकानंद सुट्टे में मांस खाने में राम कृष्ण के अस्तित्व को नकारने वाले देश के पहले सन्यासी हैं | जैन और बौद्ध दर्शन का अपने कितना अध्यन कर लिया हैं जो वेदानुकूल सिद्ध करना चाह रहे | और वेद भाष्य आचार्यो या संस्कृतगयो के बस कि बात नहीं महर्षि पाणिनि कि व्याकरण अष्टाध्यायी पतंजलि का महाभाष्य यस्कराचार्य का निरुक्त निघंटु के साथ समाधि लगानी भी आनी चाहिए | दयानंद सारी विद्याओ और आत्मोनात्ति कि बढ़ाये पार कर चुके थे | रामकृष्ण और विवेकानंद तो योगदर्शन कि समाधी के पास भी नहीं पहुचे थे |
आपके शिष्ट शब्दों के लिए धन्यवाद कृपया विवेकानंद को हिंदू धर्मं का उद्धारक सिद्ध करे उपरोक्त बाते गलत सिद्ध कर के धन्यवाद |
एक प्रश्न है आप सब से :- क्या स्वामी विवेकानंद जी ने इस देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था ??? विवेकानंद जी १८६३ से लेकर १९०२ तक इस पावन धरती पर रहे | क्या किया उन्होंने इस देश के स्वतंत्रता आंदोलन में >>>??? यदि कोई भूमिका निभाई तो क्या, कब, कैसी, कहाँ ? कुछ उदाहरण दें | पतें बताइए | कोई उल्लेख है क्या स्वामी विवेकानंद साहित्य में ??? यदि नहीं तो क्यों नहीं ??? और यदि कोई भूमिका नहीं निभाई तो फिर क्यों हम सब और हमारे शिक्षक विवेकानंद का चित्र १५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ लगाते हैं ???? क्यों ??? कोई उत्तर ??? मैं ये सब प्रमाण के साथ लिख रहा हूँ | यदि आपको बुरा लगता है तो कृपा कर मेरी बात को गलत साबित करें प्रमाण दे कर | मांसाहारी और धुम्रपानी विवेकानंद को हम अपना आदर्श क्यों माने ??
ReplyDeleteare yar ye dakiyanusi band kro aur ise delete kro yaha hm pahale se hI bate huye hai oopar se ap aur bat rhe hai
ReplyDeleteप्रिय भाई,
Deleteबटे है क्यों के हमें ढोंगी साधू सन्यासियों ने घेर रखा हैं |
सन्यासी निर्भय होता और राष्ट्र को एक कर देता हैं अगर विशुद्ध हुआ ना के माँसाहारी होता हैं | प्रमाणों को देखिये कहा से दकियानूसी दिखाते आपको ?
अगर जो लिखा वो गलत है तो जरुर मिटा देना चाहिए पर पुष्टि कर चूका हू निश्चिंत रहिये सब सत्य लिखा हुआ हैं |
प्रिय बंधू
ReplyDeleteगर्व से कहो हम हिंदू है ये नारा स्वमे विवेक नन्द ने देय था हमारे धरम में अगर कोई प्रगटे या आचा कम कर रहा है तो लोग यस के टाग खीचते है उस समय कुछ गलत व्यक्तेयो ने जरुर उन पुस्तकों से छेद चाड के है ओउर विवेक नन्द को गलत बताया है स्वामी जे जरुर यह जानते थे के हिन्दुओ को गो मांस खाना वर्जित है तो वो कैसे कह सकते है के गाव मांस खाओ ......ओउर हो सकता के के [प्रेश बलों के कुछ ओउर चाप देय हो ...हमें बड़ा दुःख हुआ के आप जो खुद हिंदू धरम के प्रचारक है वो ऐसा लिख रहे है .............क्रपा कर के इस गलत लेख को देलेट कर दे ओउर ऐसे गलत बात फैला के मुसलमानों का साथ न दे .....ओउर हिंदू सदुओ को चोद कर मुल्ला मोल्वेयो के बारे में ऐसे लेख लिखे
धन्य बाद
प्रिय भाई,
Deleteहिंदू शब्द मुसलमानों और अंग्रेजो से प्रचलन में आया | विवेकानंद संयासियो के राष्ट्रवाद को खत्म करने के लिए बर्तानिया मीडिया द्वारा उठाये गए थे | तभी हिंदू शब्द का प्रचार किया | १९३९ तक राष्ट्रिय स्वं सेवक संघ गाता रहा नमो वत्सले आर्य भूमे....
सारे कवी आर्य शब्द का हि प्रयोग करते थे ये १९३५ के एक सम्मलेन में निर्णय हुआ था |गर्व से कहो हम आर्य हैं भाई | आज अग्निवेश नाम का एक कथित सन्यासी खुद को आर्य समाजी कहता है जब के वास्तव में वह कमुनिस्ट नास्तिक विचारों वाला हैं | विवेकनन्द उस समय के अग्निवेश थे संघ किन कारणों से उठा रहा हमें नहीं पता पर उनका खुद का खानपान आचार व्यहवार हिन्दुओ जैसा नहीं था | हमने ये इसलिए लिखा ताकि कोई हिंदू मांसाहार का भविष्य में समर्थन न कर सके विवेकानंद का नाम लेकर जैसे ये कर रहे देखिये इन्हें
http://creative.sulekha.com/i-am-a-hindu-and-a-beef-eater-too_112337_blog
अपने हि धर्म के संयासियो कि हम अकारण निंदा कर के पाप के भागी थोड़े बनाना चाहेंगे | जो जैसा है हम वैसा हि लिखेंगे |
आपकी समीक्षा के लिए धन्यवाद बंधू
नमस्ते ओ३म्
गर्व से कहो हम आर्य हैं ?
Deletehttp://answeringyou.blogspot.in/2011/04/blog-post_18.html
महाशय कि बात सुनकर मुझे किसी कवि कि दो लाईन याद आती है कि -
Deleteवो लिए किचड खडा, मै लिए गुलाल
जिसके हाथ जो था उसने दिया उछाल
आपको एकदम सही याद आई विवेकानंद से संबधित साहित्य में हमें यही सब मिला सो हमने लोगो के सामने रख दिया अब आप इसे कीचड़ कहे या गुलाल मर्जी आपकी |
Deleteमहाशय कि बात सुनकर मुझे किसी कवि कि दो लाईन याद आती है कि -
ReplyDeleteवो लिए किचड खडा, मै लिए गुलाल
जिसके हाथ जो था उसने दिया उछाल
आपको एकदम सही याद आई विवेकानंद से संबधित साहित्य में हमें यही सब मिला सो हमने लोगो के सामने रख दिया अब आप इसे कीचड़ कहे या गुलाल मर्जी आपकी |
Deleteकृपया विचार से न घबराएं.
ReplyDelete1.श्री रामकृष्ण परमहंस जी की एक बार महर्षि दयानन्द से मुलाकात हुइ थी. यह एक छोटी सी मुलाकात मात्र थी कोई शास्त्रार्थ नहीं था.महर्षि दयानन्द के जीवन चरित लेखक श्री देवेन्द्रनाथ मुखोपाध्याय जी इस विषय की जानकारी लेने के लिए रामकृ्ष्ण मठ गए थे.वह बंगाल के ही रहने वाले थे और बंगाली उनकी मातृभाषा थी. परन्तु उनको शास्त्रार्थ जैसी कोई भी जानकारी नहीं मिली. यद्यपि पण्डित लेखराम जी भी पहुंचे थे परन्तु वह हिन्दी भाषी थे.उन्हे भी कोई विस्तृत जानकारी नहीं मिली. जहां तक रामकृष्ण परमहन्स जी के जीवनी लेखकों द्वारा लिखी घटनाएं हैं.उसमें हर बात को इतना बढा-चढा कर लिखा गया है.
रामकृष्ण मठ में आज भी सन्यासी मांस खाते हैं ये बात एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताई थी.अकाल व 1971 के युद्ध में उत्कृष्ट जनसेवा के लिए ये मिशन प्रशंसा का पात्र है.
भाइयो ये पूर्ण रूप से भ्रामक है और किसी बात को पूर्ण रूप से समझे बिना लिखा गया है आपके हर आक्षेप का उत्तर आपको मिलेगा. मैं दयानंद का विरोधी नहीं परन्तु समर्थक हूँ पर मैं विवेकानंद का भी विरोध नहीं सहूंगा. मैंने उनके सभी पुस्तकों को पढ़ा है. एक और बात जहा तक विवेकानंद के तरीके पर प्रश्न ही मैं उनके तरीके और दयानंद जी के विचार से सहमत हूँ अगर इन दोनों महापुरुषों की बातों को मिला दिया जाये तो हिन्दू धर्म की पूनास्थापना पूरे विश्व में हो सकती है|
ReplyDeleteजब तक आप जवाब ना दे तब तक ये भ्रामक कैसे हों गया ?
Deleteऔर ये विद्यानंद सरस्वती जी द्वारा दिए गए प्रमाण है | यहाँ दयानंद कहा से अगये उनसे कही समस्या हों तो वो अलग जगह बताये | विवेकानंद हिंदू विरोधी था बताये कैसे उसने हिंदू हित का कार्य किया ?
गौ रक्षा का कार्य किया ? गुरुकुल खोले ? समाज सुधार का कार्य ? भाषण भी आज के सेक्युलर वाला दिया |
जब कुछ मिल जाए तब आइयेगा |
नमस्ते
see this too
ReplyDeletehttp://aayipanthi.com/2013/09/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3-%E0%A4%A6%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D/
@rashtraprahari g, apne apne ek tippani me kaha h k hamari varta RK MISSION se ho rai h agar wah shakahar adi par sahmat ho jaye to ham yah lekh mita denge r unke samarthan me b likhenge, ham apse puchte hn k agar Swami Agnivesh ya Agniveer k koi sadasya dhan-lalach ya kisi anya prakar k lalach me aakar Maharshi Dayananda k vachan me akshep kr de to isme unka kya dokh? Mere kahne ka tatparya h k apka Swami Vivekananda Ji k prati vichar vartaman R.K. Mission k vichar par tika h, ap bhool se hi sahi kintu bada adharmik va hindutvavirodhi karya ka sanchalan kar rahe h, apko yah vidit hona chahiye k vartaman RK MISSION ko christians apne dhanbal adi bal se apne vash me kar rakha h, esme Preranapunj Pujya Dharmacharya Swami Vivekananda wa unke Paramhans Shriguru Rāmkrishna Ji ka kya dosh, ye sab foreign & christian fundings ka khel h bandhu, Uttam to yah hoga k ap jaise buddhiman Ārya bandhu apne us Prachand Hindutwa Prakash Swami Vivekananda ko apna adarsh ghoshit karen, aur us dhan lobhiyo ka bhandaphod karen jo Swami Ji kathano ko dushit karne ka dussahas kiya hai.
ReplyDeleteBhrate apne upar vibhinn bandhuo k tippaniyan padhe adhiktar ne apka virodh kiya, jo ek adh samarthan mila way Āryasamāji bandhu the, apne ye b anubhav kiya hoga sabhi virodhi drudh sanātani bhi the, kyu k Swami V. Ji ne Āryasamāj ko bada yogdan diya h vishwapatal par apne Hindutva ko ābhāvān banane me, unhe ap b nakar nahi sakte bas ap mane na mane apka vartaman RK MISSION se dwesh awashya h kintu isme Parampujya Swami Ji ka kya dokh? Jaise Maharaj Manu k vachan ko badal diya lobhio ne vaise Swami Ji k vachan k sath hua, r Hindu shabd jo Sindhu ka apbhrans h, Islam & Christianity adi k astitva se bahut pahle ka h lagbhag 4000 varsh purana, waise Sanātan shabd hi uttam hoga Hindu se par wo bad ki bat h, jab apne rashtra ko ek Āryarāshtra ghoshit ki ja sakegi to wah parivartan kar li jaegi, Swami Ji ne Hindu shabd ka prayog esliye kiya tha k us samay k log desh-videsh me (US adi me) Sanātani ko Hindu shabd se jante the, 900 varsh tak ham mughalo k daas rahe, atah apse anurodh hai k Swami Vivekananda Ji k apeksha vartaman RK MISSION ka virodh karen aur Swami Ji k jo satyavachan h uska prachar kare, unke sahitya ko akshepmukt kare, Swami Dayānanda & Vivekānanda Ji ka uddeshya ek hi tha Vedic Sanātan Jnān ka prachar karna... Swami Vivekānanda Ji Jnāntatva k prachar me vyast rahe, wah antarvishay h, parāvidyā h, aur yah sarwadhik mahatwapurn h vedanusar, vedaadhyayan, gurukul shiksha adi to aparāvidyā h, dono k mahatwa ka antar janane k liye Kathopanishad k shuru me hi dekhe vidya k prakar evam mahatwa ki charcha hui h, adyashankaracharya k vivekchudamani me b parāvidyā wa aparāvidyā ki charcha hui h use b padhe, ap samaj jayenge swami ji ne kya kiya? Swami ji ne us vidya ka prachar vishwa me kiya jis par Sanātan Dharma tika h, Kathopanishada wa Vivekchudamani aadi grantho me kewalmatra shastro ka adhyayan karnewale aur Brahmjnān se vanchit logo ka jam k virodh kiya gaya h, Ādyashankaraāchārya Ji ne to yah b kahe h Vivekchudamani me "shabdjalam mahaaaranyam chitbhramankaranam" (VC : 62),
Esiliye apse vinamrānurodh h k ap es lekh ko mita kar ek navlekh ka srujan kare jisme jo vastavik doshi hn aaj k way acharya jo vartaman me RK MISSION ka rakhwali k nam par vivekananda sahitya me akshep kar rahe hn, unka pardaphas kare, satya ka samrakshan kare, asha h k ap es par dhyan denge kisi b prakar agar aur prashna ho to awashya sampark kare, www.facebook.com/sanjeevnab
Dhanyavād!
नमस्ते संजीव जी,
Deleteआपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद | मैंने विवेकानंद की इन बातो पर आर के मिशन के इनकार और धर्म पर कार्य को आने पर उनका समर्थन देने को कहा था धर्म के कार्य मे | जैसे गौ रक्षा का ही कार्य करे इतने बड़े-२ आश्रम है गौ सेवा हों सकती है | आश्रम मे फिर भी राष्ट्र भक्त और गौ भक्त मिल जाएँगे विवेकानंद दुर् दुर् तक नहीं थे | वे तों धन कमाने मे लगे थे | आज बाबा नहीं हुए कितने पैसा बना रहे है | अंग्रेजो ने बहुत से मंच खड़े किये साधुओ के माध्यम से अपनी बात प्रचारित कराई विवेकानंद ने वही सब कहा | शुरू से हू विवेकानंद को धन देते रहे | शिकागो पहुचाया ही इसलिए गया | सब नियोजित षड्यंत्रों के अंतर्गत | हिंदू शब्द कोई अति प्राचीन नहीं नवीन शब्द है इसकी तों कोई मूल धातु ही नहीं | अपभ्रंश को स्वीकारना बुद्धिसंगत नहीं |
http://answeringyou.blogspot.com/2014/02/blog-post.html
अग्निवीर ने ही सर्वप्रथम विवेकानंद का भंडाफोड किया था फिर इनके सुर बदल गए धन के लोभ मे देखिये प्रमाण
http://answeringyou.blogspot.com/2014/02/anti-hindu-is-presented-as-hindu-icon.html
https://groups.yahoo.com/neo/groups/aryasamajonline/conversations/topics/12150
अब अग्निवीर के बदले सुर देखिये
https://www.facebook.com/agniveeragni/posts/634826413198369
हिमांशु पाठक नाम के व्यक्ति के उत्तर पर कैसा झूठ | ये होता है धन का लोभ |
हम सत्य से समझौता नहीं कर सक्ते क्षमा चाहेंगे |
कृपया आप पढे अपने धर्म को और फिर समझे विवेकानंद के माध्यम से अंग्रेजो ने क्या बाते प्रचारित की | आर के मिशन वही दिखा रहा जो विवेकानंद थे यदि वो ऐसे नहीं थे तों कृपया सिद्ध करे | उन्होंने अंग्रेजो के विरुद्ध कोई कार्य किया हों गौ रक्षा पर कार्य किया हों वेदों का प्रचार किया हों | उन्होंने तों आज के सेक्युलारिस्म की नीव रखी है |
संघ वालो ने अंग्रेजो का कार्य आगे बढ़ाया विवेकानंद का चित्र रख कर आज कम्युनिस्ट भी विवेकानंद को आदर्श मान रहे और आर एस एस भी |
अप्रमाणिक हम कुछ नही लिखते | आर के मिशन शुरू से वही कर रहा जिस लिए उसे बनाया गया था |
मैं तो इस पोस्ट को पढ़ कर चक्कर में पढ गया.
ReplyDeleteएक विदेशी जाती ने यु ही शासन नहीं किया |
Deletehttp://answeringyou.blogspot.in/2014/02/anti-hindu-is-presented-as-hindu-icon.html
अन्य
http://answeringyou.blogspot.in/2013/08/vivekanands-ardent-desire-for-beef.html
sir g agar hum videshi jaati ki baat kar rahe hain to pls. bata dein k budh or jain to yahin ke dharm the jinhe hamare purwajon ne yahan se bahar kar diya tha g
Deleteaapne kaha hai ki hinduo me murti pooja budh ke samay se shuru huyi hai.. jaha tak meri jaankaari hai ki budh 2500-3000 saal pahle the... lekin ab jab kayi jagah search ke samay murtiyaan milti rahti hai, jinka jab samay nikaala jaata hai to wo 5000-6000 saal puraani tak hai.... to sawal ye hai ki aap kis murti pooja ke baare me kah rahe hai??
ReplyDeletemai ye saaf kar du ki mai koi debate nahi kar raha hu, apni jaankaari spasht karne ke liye pooch raha hu.. isliye aap apni baat uper rakhne ke liye nahi, balki mujhe sach se avgat karane ke liye prayaas karen...
भाई, मुर्तिया तों आदि काल से बनाई जाती थी पर उनसे मनुष्यों सा व्यहवार नहीं होता था | शिल्प कला का तों एक विस्तृत शास्त्र है हमारे यहाँ | इसलिए भ्रमित ना हों के मुर्तिया किस काल की मिलती है |
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteविवेकानंद का भाई भूपेन्द्रनाथ दत्त क्रांतिकारी था तो विवेकानंद ने उससे देश के लिए काम करने से क्यूँ मना नहीं किया ?
ReplyDeleteनिवेदिता जिसने वायसराय कर्जन क भरी सभा में क=झूठ साबित किया !
और निवेदिता से कहा की अब आप नारी शक्ति की सेवा करो ऐसा क्यूँ कहते !!
और आपने जो भी किताबो के हवाले दिए है वो भी ९९ % कम्युनिस्ट लेखको के है !!!
जैसे आज आर्यसमाजी के उच्च पदाधिकारी अपने घर पर चुप मूर्ति पूजा करते है तो उनके इस कुकर्म के लिए आप दयानंद जी को दोष देंगे ? नहीं !!
ठीक उसी तरह विवेकानन्द के चेलो ने इन बातो को मन माफिक गढ़ दिया है !!!
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भूपेंद्रनाथ दत्त के बारे मे सबको और प्रकाशित करे | किसी कि हत्या कि थी कही बम फेका था उन्होंने ? कितने वर्षों कि जेल काटी थी | हम जनाना चाहेंगे |
Deleteकृपया उन आर्य समाजियो का नाम भी बताये जो पदाधिकारी है और घर मे पूजा करते है | संभव हों तों संपर्क सूत्र भी दे | आप यदि संघी घुसपैठ का बात बता रहे तों संघ वाले आपको छोड़ेंगे नहीं | यदि उनके किसी आदमी का नाम लिया तों | हां तों निवेदिता और विवेकानंद के भाई इन सबकी चर्चा के साथ लेख का खंडन तों करे | ये सब छप रहा है आर के मिशन मे | निखिलानंद क्या कम्युनिस्ट थे ? वैसे हा कम्युनिस्टों के आदर्श भी विवेकनादं ही है |
आपने एक ही बात २ बार कही थी तों जिसमे कम पंक्तिया थी उसे मिटा दिया |आर के मिशन कम्युनिस्टो का कार्य कर रहा ये टो आप मान गए | अब विवेकनादं ने ये सब नही किया ये सिद्ध करने का कष्ट करे |
Swami vivekanad ka aagman bharat ke sabhi dharm , parmpara , mato or pantho ke liye huaa tha. Swami ji universal hai.
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